पृष्ठ:रसकलस.djvu/४१९

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रसकलस १७२ दानिन को चित होत है दीन-जनन अनुकूल । कर सुवरन बरसत रहत भरत बदन ते तजि उदार जन को हरत दीनन को धन-प्यास। है काके कर कमल मैं कमला - मजु - मवास ॥१०॥ फूल 11 नायक के और भेद रूप-यौवन-सम्पन्न, गुण मान, राग-रस-जाता, सुरसिक, सहृदय और नाना- कला-कुशल नायक के धर्मानुसार तीन भेद-१-पति, २-उपपति और ३-वैसिक, तथा अवस्था के अनुसार दो भेद १-मानी और २-प्रोषितपति-माने गये हैं उदाहरण कवित-- चोज-बारी वातन मो मोहत मनोज हूँ को मजु - मुख - लुरित अलक लोक-फंद है। सॉवरो मलोनो मद-मंद हॅसि टोनी करें गौरविन - गमन विमोहक गयंद है। 'हरिऔध' बैन कैसे ताकी सुखमा को कहे जाको हेरि नन हूँ को नाको होत बद है। प्राचिन को तागे लोक-हियरा-हरन-वारो जीवन-महागे प्यारी ब्रज-नभ-चद है ।। ||१|| मगन भयो है मन लालिमा पगन पग्वि टरयो पीदुर्ग की या सुढार-ढलकन मुगठन जोहि, जन्यो युगल - जघन? को दच्या कानी हूँ की मुद्रधि छलकन पं ।