पृष्ठ:रसकलस.djvu/४२९

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उसकलस १८२ दोऊ हैं जलधि - जात सरसात सीकरन दोऊ हैं बसीकरन - पथ अनुसरते। दोऊ हैं सुखद ताप - कदन मदन - धाम सीतलता - सहन सरस - रसधर ते। 'हरिऔध' दोऊ हैं सजीबन स-जीवन के आजीवन जीवन को मोद हैं बितरते । सुधा - धार स्रवत धरा पर सुधाधर ते सुधा - विंदु चुवत सुधाकर के कर ते ॥३॥ पुलकित - कोमल - कलित - किसले समान सु - ललित - पानि औ मृदुल-पग दरसात । विकसित - सरस - प्रसून लौं प्रमोद - वारे प्यारे प्यारे अधर सुगधन-सने लखात । 'हरिऔध' जाकी हरियाली लाली जोबन की लगे - नेह - बायु मद मंद मंजु लहरात । लपटी नव - तनु - तमाल अलबेले - लाल बाल-अलवेली नेह-बेली ज्यों लहलहात ॥ ४ ॥ कत जो न आयो कत आयो तो वसंत-पापी पावक लगावति पलासन की पॉति है। कल - कठ - कूक वहु - विकल वनावति है चौरे-चौरे आमन बिलोकि विलखाति है। 'हरिऔध' बैहर ते विहरि करेजो जात अवलोकि कुसुम - अवलि अकुलाति है। पीर-पीरे-पातन ते पीरी परी जाति बाल सीरे उपचारन ते सीरी परी जाति है ॥ ५ ॥