१८३ उद्दीपन-विभाव दोहा-- अमल-धवल-नभ-तल भयो नवल - प्रभा को पाय । खिले-कमल जल मैं लसत पल पल नव-छबि छाय ॥६॥ निकरत नभ मैं निरखियत रस-मय-किरिन पसारि । रतनाकर - अकम - रतन नव - रतनन - छबि धारि ॥७॥ मधुर - तान गूंजत गगन तजत तेज गुन भान । रस - मय करत बसुंधरा समय - सुरन को गान ।।८।। निर्मल - नीले-नभ दिपत नव-दुतिवंत कलिंद । फूले - फूले - कमल पै मूले फिरत मिलिद ॥६॥ हरे लेत काको न मन खिले फल ए लाल । हरी हरी ए पत्तियाँ हरी भरी ए डाल ॥१०॥ बरवा- वन बागन मैं मोरवा करत पुकार । इत उत होत मिगुरवा घन - मनकार ॥११॥ सखा समान-शील-व्यसन, सुख दुःखादि में नायक का सच्चा सहायक पुरुष सखा कहलाता है। उदाहरण दोहा-- सुख मैं सुखित सदा रहत दुख मैं दुखित दिखात । सहज - सखा सब दिवस रस बरसत सरसत जात ||शा सखा के भेद सखा चार प्रकार के होते हैं - १-पीठमर्द, २-विट, ३-चेट और ४-विदूषक ।
पृष्ठ:रसकलस.djvu/४३०
दिखावट