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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४३१

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रसकलस १८४ १-पीठमर्द मानवती नायिकाओं के प्रसन्न करने में समर्थ सखा पीठमर्द कहलाता है। उदाहरण दोहा- घूमि घूमि घिरि घिरि लगे नभ मैं घन घहरान । मान छोरि दै मानिनी कही हमारी मान ||१|| सरस - देह पादप भये नेह - पाठ कर कठ। कोकिल - कंठी मान तजु कूकि उठे कल - कंठ ।।२।। २--विट जो सखा सब प्रकार की कलाओं में कुशल होवे उसको विट कहते हैं। उदाहरण दोहा- मोहत ललना - लाल - उर बिलसि लालसा मोहि । सकल - कला - कोबिद सकत कौन कला कर नॉहि ।।१।। विविध - भाव प्रगटत रहत सरस एक ते एक। तिय-पिय-सुग्व-तन-छॉह बनि छोरत नॉहिँ छनेक ।।२।। ३-चेट नायक-नायिका को यथावसर चातुरी. से मिला देने में निपुण सखा चेट कहलाता है। उदाहरण दोहा- कवौं मिलावत कुज मैं कवौं कालिंदी - कूल । चेट करत चेटक रहत काल मिले अनुकूल ||१||