पृष्ठ:रसकलस.djvu/४७७

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उसकलस २३० रग - भरे झरना भरत नीर-कन हैं पियत कैसे अोप है अपार कैसो पाहन-पसर 'हरिऔध' कैसी खिली कलित-कुमोदिनी है सुभ्रता वसी है कैसी सीपन-सगर मैं। कैसो बारि हलत समीर मंद-मद लागे कैसो झलमलत मयक मानसर मैं ।। १ ।। कलित - कमोरे रंग बरसत चारुता निचोरे लेति रोरी मजु-भाल की। मानस मैं मोद-सुधा-सरिता हिलोरे लेति प्रीति-गॉठ जोरे लेति जोति-मनि-माल की। 'हरिऔध' छोरि पिचकारी चित छोरे लेति बोरे लेति रस मैं लचकि लक बाल की । लालन के लोने-लोने-लोयन को चोरे लेति गिरि गोरे - गालन पै गरद गुलाल की ।। २ ॥ दोहा- विलसत हैं सरसिज-युगल मनरंजन - ससि-गोद । मोद-निकेतन बदन लखि काहि न होत बिनोद ॥३॥ ४-आहार्य वेश धारण को आहार्य अनुभाव कहते हैं। दोहा- पहिरि सु-कुडल कल - मुकुट पीत-बसन वन-माल । कर मैं मुरली ले बनी मुरली - धर व्रज - बाल ॥ १॥