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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४७८

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२३१ अनुभाव सात्त्विक अलंकार नायिकाओं के अहाईस सात्त्विक अलंकार माने गये हैं। उनमें से तीन अगज, सात अयत्नज और अट्ठारह स्वभावसिद्ध हैं। अगज-१-भाव, २-हाव और ३-हेला । अयत्नज-१-योभा, २-काति, ३-दीति, ४-माधुर्य, ५-प्रगल्भता, ६-औदार्य और ७-धैर्य । स्वभावसिद्ध-१-लीला, २-विलास, ३-विच्छित्ति, ४-बिब्बोक, ५-किल- किंचित, ६-विभ्रम, ७-ललित, ८-मोट्टायित, ९-बिहृत, १०-कुट्टमित, ११-मौग्ध्य, १२-विक्षेप, १३-कुतूहल, १४-इसित, १५-चकित, १६-केलि, १७-मद और १८-तपन । विशेष प्रायः भाषा-ग्रंथों में दश हाव' माने गये हैं, और ये, वे ही हैं जो स्वभाव- सिद्ध अलंकारों की गणना में १ से १० सख्या तक लिखित हैं। कोई कोई इन में 'हेला' को मिलाकर 'हाव' की सख्या ग्यारह और कोई 'बोधक' को मिलाकर बारह बतलाते हैं। समस्त 'हाव' अनुभाव के अंतर्गत हैं, उनका स्वतत्र स्थान नहीं है। सयोग-समय में नायिकाओं में जो स्वाभाविक चेष्टाएँ अथवा भौंह नेत्रादि के विलक्षण व्यापार मनोविकारों के आधार से होते हैं वे वही 'हाव' कहलाते हैं। ये प्रायः मनोभावों के अल्पविकास के सूचक मात्र होते हैं। अंगज सात्त्विक अलंकार १-भाव निर्विकार चित्त में उबुद्धमात्र काम-विकार को भाव कहते हैं । उदाहरण दोहा- वहै पवन सौरभ वहै वहै आम को बौर । वहै कामिनी हूँ अहै भयो आज मन और ॥१॥