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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४८०

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२३३ अनुभाव अयत्नज सात्त्विक अलंकार १-शोमा रूप-यौवन आदि से सपन्न शरीर की सुन्दरता को शोभा कहते हैं। उदाहरण दोहा- छन छन नवता लहत है छबि छलकत-अवदात । चंद सरिस सुंदर - वदन मृदुल - सलोनो - गात ॥१२॥ तिल वन जाति तिलोत्तमा काम-कामिनी छाम । है ललामता को निलय ललना - रूप - ललाम २।। २--कांति स्मर-विलास से बढ़ी हुई शोभा का नाम काति है। उदाहरण दोहा- काम-कलामय है लसति हरति कल्पना - क्लाति । विकसे-अभिनव-कुसुम सी कांतिमयी की कांति ।।१।। बिलसे नवला - अंग मैं काम-कला की जोति । चामीकर से गात की चमक चौगुनी होति ।।२।। बहुविस्तृत काति को दीप्ति कहते हैं। उदाहरण दोहा- दीपावलि तन-दुति निरखि दबकी सी दिखराति । विविध-जोति उजरी फिरति जरी बीजुरी जाति ॥१॥