पृष्ठ:रसकलस.djvu/४८६

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२३६ अनुभाव 2 तू लेति। उदाहरण दोहा- तिय कछु चाहत कहन पै लाज जीह गहि लेत । मुख के मधुमय-बयन के काज नयन करि देत ॥ १॥ वा लज्जा ते वावरी कहा काज पिय के कान समीप जो बीन बजन नहिं देति ॥२॥ १०- ललित सर्वोग सरस और शृंगारित करने को ललित हाव कहते हैं। उदाहरण दोहा- लाल रिझावन को हसति बोलति बैन रसाल | लोने - लोने नयन को लोल बनावति वाल ॥ १ ॥ लोच - भरे लोचनन ते वनति ललन चित - चोर । चाव सहित ललना रहति पिय - मुख - चंद - चकोर ॥२॥ सौभाग्य, यौवन आदि के अभिमान से उत्पन्न मनोविकार को मद कहते हैं। उदाहरण दोहा- वे किनमैं हैं बावरी हैं जिनमें रस नाहिं । मधु न होत तो मधुप क्यो जात माधवी पाहिं ॥ १ ॥ कौन अहै गुन - आगरी रसिक जित केहि जोहि । अरी सागरी ही सकति नागर - नर को मोहि ।।२।। १२-केलि कांत के साथ कामिनी की विहार-कीड़ा को केलि कहते हैं।