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पृष्ठ:रसकलस.djvu/४९८

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२५१८ रस निरूपण उदाहरण सवैया- वावरी वेकल क्यों न वनौं पल ही पल क्यों न उठौं अकुलाई। वेदन ते विलखौं न कहा इन नैनन ते असुआन बहाई । क्यों न गहौं 'हरिऔध' अधोरता कैसे लहौं थिरता मनभाई। एरी लगी छत मैं छतिया के गोपाल की वा अखियान लुनाई ।।१।। १-पूर्वानुराग मिलन अथवा समागम से प्रथम हृदय में जो अनुराग का आविर्भाव होता है, उसको पूवराग अथवा पूर्वानुराग कहते हैं, इसके चार मार्ग हैं-- १-प्रत्यक्ष दर्शन २-चित्रदर्शन ३-श्रवणदशन ४-स्वप्नदर्शन १-प्रत्यक्ष दर्शन किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के नयनगोचर होने पर जिस अनुराग का प्रादुर्भाव होता है, उसे प्रत्यक्ष दर्शन कहते हैं। उदाहरण ऋवित्त-- कलित - कपोलन पै अलक लुरी हैं मंजु सुललित - आभा लसी अधर - तमोर की । हियरा - हरन - वारे उर पै फवे हैं हार अंगन प्रभा है आछे - भूखन • अथोर की। 'हरिऔध' बेस वसनादिक बखाने बने आने वनै चित मैं निकाई नैन - कोर की। एरी बीर काकी मति बावरी चनी है नॉहिं सु • छवि बिलोकि चॉकी नवल-किसोर की ||१||