पृष्ठ:रसकलस.djvu/५००

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२५३ रस निरूपण ए 'हरिऔध' हॅसी हित - जोरति हेरन है हियरा हुलसावत । चित्र तिहारो चितेरे बताइ दै चित्त बसे हुँ क्यों चित्त चुरावत ॥ १ ॥ दोहा- चित चित्र में लाल के अमल - अमोल - कपोल । ललकित लालायित भये ललना - लोयन - लोल ॥२॥ ३--श्रवण-दर्शन रूप, गुण अथवा कीर्ति श्रवण से जो अनुराग उत्पन्न होता है उसे श्रवण- दर्शन कहते हैं। उदाहरण सवैया---- तू बतरावति है मुसकाइ कै मो - मति माधुरी माँहि फंसी है। पल्लव से तव होंठ हिले नव-नेह-लता उर मोहिं लसी है। हौं छवि देखे बिनाहिँ छरी गई तू छरे मोहिँ भई सु - जसी है। नैन मैं मेरे रमे मन-मोहन वैन मैं मोहनी तेरे बसी है ।।१।। दोहा- मानस को मोहन लगे मन - मोहन छवि - ऐन । लोने लोने वैन सुनि भये भये सलोने सलोने नैन ॥२॥ ४--स्वप्नदर्शन स्वप्न में दर्शन करने से किसी में जो अनुराग उत्पन्न होता है, उसे स्वप्न- दर्शन कहते हैं- उदाहरण सवैया-- राति ही ते है अराति भयो उर आकुल - भाव उसास सनो है। है न उवार उमाहन ते बहु - दाहन ते दुख होत धनो है।