पृष्ठ:रसकलस.djvu/५०१

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रसकलस २५४ भूलति सूरति ना 'हरिऔध' की सावन-नीरद नैन वनो है। सो सपनो जरि जाउ सखी अपनो सुख जाते भयो सपनो है ॥१॥ दोहा- होवै वहु कमनीय कोउ कै कै कामिनि अनुकूल । सपनो सपनो है अरी तू यह सपनो भूल ॥२॥ २-मान प्रियापराधजनित प्रणय कोप को मान कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है-लघु, मध्यम और गुरु । लघु मान पर-पत्नी-अवलोकन-जनित मान को लघु मान कहते है, यह हँसी और मीठी बातों ही से निवृत्त हो जाता है। उदाहरण दोहा- मोको करि करि बावरी हँसहिं खिजहि खिसियाहि । पिय ए अखियाँ रावरी कत इत उत चलि जाहि ।। १ ।। मध्यम मान परस्त्री प्रशसा सूचक वाक्य अथवा अादरपूर्वक उसका नाम लेते सुनकर जो मान है, उसे मध्यम मान कहते हैं, यह विनय और शपथ श्रादि से दूर हो जाता है। उदाहरण दोहा- अव लौँ पतियाई वहुत पिय कब लौं पतियाहि । जो जिय को भावति न तिय मुँह मै श्रावति नाहिं ।। १॥ - 9