२५५ रस निरूपण गुरु मान अन्य स्त्री रमण विश्वास जनित मान को गुरु मान कहते हैं, यह नाना अलकार देने और पाँव पड़ने से दूर होता है। उदाहरण दोहा- प्रिय तो मनहीं की करहु जो मन मानत नाहि । वाही क परसहु पगन जा पग परसे जाहि ।।१।। ३-प्रवास प्रियतम के परदेश निवास को प्रवास कहते हैं। वह दो प्रकार का होता है १-भूत प्रवास, २-भविष्य प्रवास । भूत प्रवास जिस प्रवास का सबध भूतकाल से होता है उसे भूत प्रवास कहते हैं । उदाहरण सवैया- अति आतुर प्यासे समान पियूख भरे अखरा-रस पीजत है। दिन हूँ ढिग श्रावन के गुनि कै अपनो हियरा थिर कीजत है। पद प्रान प्रिया पढ़ि कै 'हरिऔध' बहे असुश्रा तनु भीजत है यह रावरी-प्रेम-पगी-पतिया रखि के छतिया नित जीजत है ।।१॥ पति ही परदेसी भयो तो कहो तिय जीवन को फल कौन लहा। 'हरिऔध' न धीरज होवै छनौ अकुलात अहै मन मेरो महा। तन मो सी तियान के दाहन मैं जग मैं जस कौन सो तेरो रहा । विहरै हियरा नहिं वूमि पर विधना हम तेरो विगार यो कहा ||२||
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