पृष्ठ:रसकलस.djvu/६१३

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( २ ) हिन्दी ज्ञानेश्वरी महाराष्ट्र प्रान्त के प्रसिद्ध महात्मा श्री ज्ञानेश्वर जी ने भक्तों को भगवद्गीता का वास्तविक मर्म समझाने के लिए श्री शंकराचार्य के मतानुसार 'ज्ञानेश्वरी' नामक बहुत ही विद्वत्तापूर्ण और विशद टीका लिखी है। आज तक गीता पर जितनी टीकाएँ निकली हैं उनमें यह सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है । मूल्य सजिल्द का ४।।) भाषा भूषण ( सटीक) अलंकार का ज्ञान प्राप्त करानेवाली यह सबसे छोटी और सर्वोत्कृष्ट पुस्तक है । दोहों में लक्षण और उदाहरण दोनों दिए गए हैं इससे कंठस्थ कर अलंकार का ज्ञान प्राप्त करना सरल-सा है। मूल्य १) हिन्दी-नाट्य-साहित्य इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्राय ५० पृष्ठों में संस्कृत-नाट्य-साहित्य की उत्पत्ति, विकास, नाटक तथा लक्षण-ग्रन्थों का सक्षिप्त इतिहास, रूपक-भेद, वस्तु, रस आदि पर एक पूरा प्रकरण दिया गया है। "इसके अनन्तर भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र के पूर्व के नाटकों का इति- हास देकर भारतेन्दु जी को नाट्य-रचनाओं का विवरण आलोचना सहित क्रमश तीन प्रकरणों में दिया गया है। इसके बाद भारतेन्दु- काल के अन्य नाटककारों का विवरण एक प्रकरण में देकर वर्तमान- काल के प्रमुख नाटककार 'प्रसाद' जी की रचनाओं की ६० पृष्ठों में विवेचना की गई है। पुस्तक में नाटकों के इतिहास-सम्बन्धी समग्र ज्ञातव्य बातें दी गई हैं । मूल्य २।।।