(६) वीर रस का भयानक और शांत के साथ । (७) शांत रस का वीर, शृंगार, रौद्र, हास्य और भयानक के साथ। (5) बीभत्स का शृंगार रस के साथ । साहित्यदर्पणकार ने शांत का विरोधी शृंगार, हास्य और गेंद को माना है, परंतु इन तीनो का विरोधी शांत को नहीं माना। इसी प्रकार रौद्र का विरोधी हास्य को लिखा है, परंतु हास्य का विरोधी रौद्र को नहीं कहा। से ही वीर रस को शृंगार रस का विरोधी माना है, परंतु शृगार को वीर रस का विरोधी नहीं लिखा । अन्य रसों मे यह बात नहीं पाई जाती, जैसे हास्य रस का विरोधी भयानक को लिखा है, तो भयानक का विरोधी हान्य रस को भी बताया है, इत्यादि । रसगगाधरकार लिखते हैं- "तत्र वीरथ गारयोः, शृंगारदास्ययोरिरौद्रयोः, शृगाराद्भुतयोश्चाविरोधः । 2. गारवीभत्तयोः, शृ गारकरुणयोवरिभयानकयोः, शान्तरौद्रयो., शान्त गार- योश्च विरोधः" (पृ. ७३) इसका यह अर्थ हुआ- अविरोध है-(१) श्रृंगार का वीर, हात्य और अद्भुत के साथ । (२) वीर का रौद्र के साथ । विरोध है-(१) शृंगार का बीभत्स, करुण और शांत से । (२) वीर का भयानक के साथ । (३) गैट का शांत के साथ । दोनों प्रसिद्ध विद्वानो के सिद्धांतों मे ये अन्तर है- साहित्यदर्पणकार ने वीर को 'शृंगार रस का विरोधी माना है, परनु रसगगाधरकार ने अविरोधी। रसगंगाधरकार न शृंगार का विरोधी शांत को माना है. परंतु माहित्वदर्पणकार ने यह नहीं माना, यापि उन्होने शांत का विरोधी शृंगार को लिखा है। रसगंगाधरकार
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