पृष्ठ:रसकलस.djvu/९४

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श्रृंगार रस श्रृंगार रस की परिभाषा नाट्य-शास्त्र के प्राचार्य महामुनि भग्न ने श्रृंगार की यह परिभाषा लिखी है- “यत्किचिलोके शुचिमेध्यनुबल दर्शनीय वा तच्छ गारेणोपमीयते । जो कुछ लोक में पवित्र. उत्तम, उज्ज्वल 'वं दर्शनीय है, वह शृंगार रस कहलाता है। "यथा गोत्रकुलाचारोवन्नान्याप्तोपदेशसिद्धानि पुसा नामानि भवन्ति, तथैवैपा रसाना भावाना च नाट्याधिताना चार्थानामाचारोत्पन्नान्यातोपदेशतिद्धानि नामानि । एचमेप आचारसिद्धो हृद्योचलवेषात्मकत्याच्छंगारी रसः" । जैसे गोत्र, कुल और आचार से उत्पन्न बानोपदेश सिद्ध पुरुषों के नाम होते है। उसी प्रकार नाट्याधिन रनो ओर भावो के अर्थ के जावार पर प्राचारोत्पन्न, ग्रामोपदेश सिंह नाम हैं। इसी प्रकार का प्राचार मिद्ध, हृदयनाही. उज्वल वेपात्मक होने के कारण शृगार (रस) कहलाना नाहित्यदर्पणकार लिखते हैं- शृग हि मन्मथोद्ने दत्तदानमनहेतुकः । उत्तमप्रतिमायो रसः शृगार दप्यते ।। "काम के उभेद ( अंकुरित होने ) को शृग कहते हैं. उसकी उत्पत्ति का कारण अधिकांश उत्तम प्रकृति मे युक्त. ग्म 'शृंगार कहलाता है ।" शृंगार क्या है. उनकी परिभाषा क्या है ? मेग विचार है. महामुनि भरत और माहिन्यदर्पणकार की उक्तियों से यह बात स्पष्ट हो गई । जो कुह संमार में दर्शनीय प्रधान सुदर है, नाथ ही जो पवित्र. उत्तम तौर उन्मयल है. उनका जिनमें मग्न एवं दृदयग्राही. वर्णन विकास . stus