मैं तुमसे इन्द्र का क्या हाल बयान करूँ सूर्य्य जिस समय पूर्व दिशा में उदित होता है उस समय उसका बिम्ब वैसा ही अरुण होता है जैसा कि चन्द्रमा का। तुम्हारे वियोग में महेन्द्र सूर्य्य को भी, सदृश्यता के कारण, चन्द्रमा समझ कर अत्यन्त क्रोध-पूर्ण दृष्टि से देखता है। किसका अपराध और किस पर क्रोध। परन्तु वह बेचारा करे क्या? वह इस समय बिल्कुल ही विवेकहीन हो रहा है। केवल तीन नेत्र धारी ने मनोज महोदय के साथ जो सुलूक किया था उसी को वह अब तक नहीं संभाल सका। मेरी समझ में नहीं आता कि यदि अब सहस्रनेत्रधारी उस पर रुष्ट हुआ तो उस बेचारे की क्या दशा होगी? मनसिज के तो शरीरकृत अपराधों से शचीपति सन्तप्त हो रहा है कोकिल का तो वचनकृत अपराध भी उसे सहन नहीं होता। इस डर से कि कहीं पिक का शब्द कान में न पड़ जाय वह अपने नन्दनवन में जाकर बैठने का साहस भी नहीं कर सकता। और कहाँ तक कहूँ, शङ्कर के जटाजूट वाले बाल-चन्द्रमा को अपना अपकारकर्ता समझ कर उसने महादेव का पूजन तक करना छोड़ दिया है। तुम्हारे वियोग में उसके धैर्य्य का समूल उन्मूलन हो गया है। कल्पवृक्ष संसार के दारिद्र-हरण का सामर्थ्य रखते हैं। परन्तु इस समय वे स्वयं ही महादरिद्री हो रहे है। इन्द्र के शरीर का सन्ताप दूर करने के उनके पत्तों की शय्यायें बना डाली गई हैं। अतएव वे सब बेफ्ते के दारिद्र-दीन खड़े हुए हैं। तुम शायद यह शङ्का करो कि क्या अमरपुर में कोई ऐसा पंडित नहीं जो अपने सदुपदेश से इन्द्र को धैर्य्य-प्रदान करे। शङ्का तुम्हारी निर्मूल नहीं। परन्तु उपदेश सुने कौन? रतिपति के धन्वा की अविरत टङ्कार ने इन्द्र को दोनों कानों से बहरा कर डाला है। अतएव महेन्द्र की मोह-निद्रा दूर करने वाले सुर-गुरु बृहस्पति की धैर्य्य-विधायक वाणी सर्वथा व्यर्थ हो रही है।