पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/१०१

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९—नल का दुस्तर दूत कार्य
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अष्टमूर्ति शङ्कर का जो देदीप्यमान शरीर है और याचक जिसकी नित्य उपासना करते हैं उस अग्नि का भी बुरा हाल है। कुसुम-शायक ने उसे भी तुम्हारा दास बनने की आज्ञा दे दी है। दूसरों को जलाते समय अग्नि अब तक यह न जानता था कि उन्हें कितना ताप होता है—उन्हे कितनी जलन होती है। परन्तु तुम्हारी सहायता से अग्नि को जला कर इस समय अनङ्ग उसे यहाँ तक विनीत और विनम्र बना रहा है कि भविष्यत् में दूसरों को संताप देने का उसे कदापि साहस न होगा। क्योंकि, अब उसे जलने का दुःख अच्छी तरह ज्ञात हो गया है। शङ्कर के तीसरे नेत्र मे वास करने वाले पावक ने मनसिज को एक बार जला कर भस्म कर दिया था। इस बात को तुमने भी पुराणों में सुना होगा। सो वह पुराना बदला लेने के लिए इस समय मनोज ने तुम्हारे नेत्रो का सहारा लिया है। उन्ही के भीतर सुरक्षित बैठा हुआ वह अग्नि को जला रहा है। उसका यह कठोर कार्य बहुत दिन से जारी है। तथापि वह यही समझ रहा है कि अभी तक उस वैर-भाव का काफी बदला नहीं हुआ। तुम्हारे कारण कुसुमायुध के शरो से अग्नि यहाँ तक पीड़ित हो गया है कि अपने भक्तों के द्वारा चढ़ाये गए कुसुमों से भी डर कर वह कोसों दूर भागता है।

सरोरुहो का सखा सूर्य जिससे पुत्रवान है और चन्दन के सुवास से सुगन्धित दक्षिण दिशा जिसको प्रियतमा है उस वैवस्वत यम ने भी तुम्हारे निमित्त कामाग्नि-कुण्ड में अपने धैर्य की आहुति दे डाली है। वह भी इस समय बड़ी ही विषमावस्था को प्राप्त है। शीतोपचार के लिए मलयाचल से लाये गये, कोमल पल्लव उसके शरीर-स्पर्श से यद्यपि बेतरह झुलस जाते हैं तथापि मलय इस आपत्तिकाल में भी अपने प्रभू यम की सेवा नहीं छोड़ता। कारण यह कि वह उसी दिशा का—उसी के राज्य