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रसञ्ज-रंजन
 

का वासी है। अतएव यम के शरीर के साथ मलयाद्रि भी अपने नवल-पल्लव और चन्दनादि जलाने का सन्ताप सहन कर रहा है।

रहा वरुण, सो उसकी भी दशा अच्छी नहीं। महासागर युगायुग से बड़वाग्नि की ज्वाला सहन करता चला आ रहा है। वह उसे विशेष दाहक नहीं जान पड़ती। परन्तु अपने ही अधिपति वरुण का स्मराग्नि-सन्तप्त शरीर जल के भीतर धारण करने में वह इस समय असमर्थ हो रहा है।

ये चारो देवता तुम्हारे नगर के बाहर पास ही ठहरे हुए हैं। उन्हीं की आज्ञा से मैं तुम्हारी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ। जो कुछ मैंने तुमसे निवेदन किया वह उन्हीं का संदेश है। अब कृपा करके बतलाओ कि उन्हे अपनी इच्छा पूर्ति के लिए कब तक ठहरना पड़ेगा। उनके जीवन संशयापन्न हैं। अतएव जहाँ तक हो सके तुम्हे शीघ्रता करनी चाहिए। तुम प्रतिदिन इन देवताओं की पूजा, कमल के फूलों से, करती हो। परन्तु इस तरह की पूजा ये नहीं चाहते। वह इनको प्रीतिकर नहीं। तुम्हें प्रसन्न करने के लिए ये तो स्वयं ही अपना मस्तक तुम्हारे सामने झुका रहे हैं। अतएव अपने चरण-कमलों में तुम इनकी पूजा करो; प्राकृतिक कमल फूलों से नहीं। अब क्या आज्ञा है?

नल के मुख से दिक्पालों का सन्देश सुनते समय दमयन्ती की भौंह टेढ़ी और आँखे लाल हो रही थीं। आँखे और भौहों के विकार-विभ्रम से वह यह सूचित कर रही थी कि देवताओं से सम्बन्ध रखने वाली अपनी अनिच्छा को साफ-साफ कह कर प्रकट करने के लिए मैं उत्सुक हो रही हूं। यहाँ पर पाठक यह कह सकते है कि नल के सन्देश-वाक्य यदि भैमी को इतने अप्रिय मालूम होते थे तो उसने नल को बीच ही में क्यों न रोक दिया? क्यों उसकी सारी बातें वह अन्त तक सुनती रही?