नायिका के 'आगत्पतिका' 'प्रवत्स्यत्पतिका' आदि भेद करना। हाव=मनोविकारों के सूचक कटाक्ष आदि।
पृष्ठ २०—हेला भाव=अभिलाषा, कटाक्ष आदि का अत्यन्त स्पष्टरूप।
पृष्ठ २१—अवहेलना=उपेक्षा, तिरस्कार।
पृष्ठ २२—सुवर्ण=सुवर्ण, शब्द।
पृष्ठ २३—धर्मसंस्थापनार्थाय=धर्म को स्थिर बनाने के लिए (गीता में कृष्णजी ने यह कहा है कि मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेता हूँ। वहीं का यह पद है)।
पृष्ठ २६—संक्रान्ति=एक स्थान से दूसरे पर जाना। परोक्ष रूप से=उपदेश खुला होने से काव्य का सौन्दर्य नष्ट हो जाता है।
पृष्ठ २८—सापेक्ष=(यहाँ आवश्यक)। कविताकुबेर=(व्यंग्योक्ति) कुबेर देवताओं का कोषाध्यक्ष है। अतः वह सबसे अधिक धनी माना जाता है, कविता कुबेर से भाव (व्यंग्य से) तुक्कड़ कवि से है।
पृष्ठ २९—हस्तामलकबत=हथेली पर स्थित आमले के समान अर्थात् प्रत्यक्ष एवं पूर्ण रूप से ज्ञात। कुट्टिनी=व्यभिचारिणी स्त्री।
पृष्ठ ३०—दिव्य=दैवी। पोरुषेय—मनुष्य सम्बन्धी। क्रिया मातृ का मंत्र=सरस्वती देवी को प्रसन्न करने वाला मंत्र। क्टच्छसाध्य=कठिनाई से ठीक होने वाला।
पृष्ठ ३१—अभिनन्दन=प्रशंसा। उग्र-सन्धि=बहस, खंडन मंडन आदि।
पृष्ठ ३२—प्राप्तकवित्वशक्ति=जिसे कविता करने की शक्ति प्राप्त हो गई हो।
पृष्ठ ३३—याञ्चा=कुछ माँगने की प्रार्थना।
पृष्ठ ३५—महायात्रा=मृत्यु। पंचक=धनिष्ठा आदि पाँच नक्षत्र जिनमें कोई नया काम करना वर्जित है।
पृष्ठ ३७—कण्ठाभरण=क्षेमेन्द्रकृत 'कविकंठाभरण' नामक पुस्तक; गले का आभूषण।