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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/१२३

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पृष्ठ ३९—दीवान = गजलों का संग्रह। इस्तेदाद = योग्यता

पृष्ठ ४३—अभावोक्तियाँ = असम्भव तथा बेसिर पैर की बातें।

पृष्ठ ४६—अपरिहार्य = आवश्यक। काफिया = अन्त्यानुप्रास, तुक। वजन = छन्द की गति।

पृष्ठ ४९—आलंकारिक = अलंकार शास्त्र के ज्ञाता।

पृष्ठ ५०—व्युत्पत्ति = शास्त्रीय योग्यता। मुशाहिदा = प्रत्यक्ष देखना।

पृष्ठ ५१—उपोद्घात = भूमिका

पृष्ठ ५३—ध्वनि = व्यंग्यार्थ।

पृष्ठ ५४—एक मात्र … है—जिन कवियों में केवल शब्दाडम्बर का ही गुण है।

पृष्ठ ५६—अनुधावन = अनुकरण।

पृष्ठ ५८—अन्त करण की वृत्तियाँ = हृदय के भाव। शब्दात्मक मनोभाव = शब्दों में प्रकट हृदय के भाव।

पृष्ठ ५९—समञ्जस = समझदार।

पृष्ठ ६०—तरणि = सूर्य। ताते = गरम। साथरी = बिछोवन। तुराई = तोशक। राखि अवध … प्रान—यदि आप मुझे अवधि तक (१४ वर्ष) अयोध्या को छोड जायँगे तो मेरी मृत्यु ही समझिये। पाठान्त—राखिए अवध जो अवधि लगि रहते जानिये प्रान' = यदि आप मेरे प्राणों को अवधि तक रह सकने योग्य समझते हों तो मुझे यहाँ छोड़ जाइए। सम महि = इकसार जगह। पलोटिहि = दबावेंगी। तुमहिं उचित … भोगू—(काकूक्ति) अर्थात् आपके लिए तप करना और मेरे लिए ऐश्वर्य भोगना कहाँ तक उचित है।

पृष्ठ ६२—उद्दीप्त = तीव्र। उपरति = वैराग्य, संसार से विरक्ति।

पृष्ठ ६३—पर्यवसान = अन्त (लक्ष्य)। उसका अच्छी … चाहिए = तात्पर्य यह है कि तर्क को छोड़ने में ही कविता का स्वाद मिलता है।

पृष्ठ ६४—रसाल = सरस तथा मधुर। सत्कृत्य … करना—