पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२४
रसज्ञ-रञ्जन
 

अच्छे कामों में समय का उपयोग करना यह स्वाभाविक … है = आनन्द तथा उपयोग के लिए कविता करना मनुष्य का स्वभाव है।

पृष्ठ ६५—राजाश्रय = राजाओं का सहारा। अज्ञात यौवना = वह नायिका जिसको अपने युवतीपन का ज्ञान नहीं। विंट = धूर्त वेश्या-प्रेमी। घेटक = दूत एवं सेवक।

पृष्ठ ६६—नवोढ़ा = नव विवाहिता नायिका। पुरुषायित सम्बन्ध = पुरुष रूप होकर रति करना (विपरीत रति)। भेदभक्ति = नायिका भेद वर्णन करने की रुचि।

पृष्ठ ६७—खण्डिता = वह नायिका जिसका पति अन्य स्त्री के पास रह कर लौटे। सुरतान्त = रति के उपरान्त। ज्ञात यौवना = वह नायिका जिसे अपने युवती होने का ज्ञान हो गया हो। विपरीत रति = स्त्री का पुरुषवत् रति क्रीड़ा में प्रवृत्त होना। उद‍्वेगजनक = ग्लानि उत्पन्न करने वाला। प्राचुर्य = अधिकता। अवलम्बन = मूल आधार।

पृष्ठ ६८—सामान्या नायिका = गणिका।

पृष्ठ ६९—चकार निकाला = कुछ भी विरोध न किया, चूँ भी न की। कूजित के मिष = मीठे वचनों के बहाने से।

पृष्ठ ७०—वासकसज्जा = वस्त्रादि से विभूषित होकर पति की प्रतीक्षा करने वाली नायिका। बिप्रलब्धा = संकेत करके भी प्रिय जिसके पास न आवे। कलहान्तरिता = पति से लड़कर पछताने वाली नायिका। दक्षिण = वह नायक जो सब की संतुष्ट रखता हुआ एक साथ कई स्त्रियों से प्रेम करता है। अनुकूल = एक ही नायिका में अनुरक्त नायक। धृष्ट = वह नायक जो झिड़कियाँ खाकर भी लज्जित नहीं होता। शठ = वह नायक जो दिखावटी प्रेम से स्त्रियों को धोखा देता है। आह्वान = पुकारना। नववयस्क मुग्धमति युवाजन = नवयुवक जो स्वभाव से ही सांसारिकज्ञान से अनभिज्ञ होते है। चेष्टा वैलक्षण्य = हाव-भावों के भेद और उनकी विशेषता।

पृष्ठ ७१—सम्मोहन शर = मोहित करने के लिए प्रयुक्त बाण। अलक्षित