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३-कवि और कविता
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भापा के कवि अपनी कविता में बुरे शब्द आर बुरे भाव भरते रहते हैं, उस भाषा की उन्नति तो होती नही, उलटी अवनति होती जाती है।

कविता-प्रणाली के बिगड़ जाने पर यदि कोई नये तरह की स्वाभाविक कविता करने लगता है तो लोग उसकी निन्दा करते हैं। कुछ नासमझ और नादान आदमी कहते है, यह बड़ी भदी कविता है। कुछ कहते हैं, यह कविता ही नही। कुछ कहते हैं कि यह कविता तो "छन्दोदिवाकर" मे दिये गये लक्षणो से च्युत है, अतएव यह निर्दोष नही। बात यह है कि जिसे अव तक कविता कहते आये हैं, वही उनकी समझ मे कविता है और सब कोरी काँव-काँव । इसी तरह की नुकताचीनी से तग आकर अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि गोल्डस्मिथ ने अपनी कविता को सम्बोधन करके उसको सान्त्वना दी है। वह कहता है-“कविते ।यह बेकदरी का ज़माना है। लोगो के चित्त को तेरी तरफ खीचना तो दूर रहा, उलटी सब कहीं तेरी निन्दा होती है । तेरी बदौलत सभा-समाजो और जलसो मे मुझे लज्जित होना पड़ता है। पर जब मै अकेला होता हूँ तब तुझ पर मैं घमण्ड करता हूँ। याद रख, तेरी उत्पत्ति स्वाभाविक है। जो लोग अपने प्राकृतिक बल पर भरोसा, रखते है, वे निर्धन होकर भी आनन्द से रह सकते हैं। पर अप्राकृतिक बल पर किया गया गर्व कुछ दिन बाद जरूर चूर्ण हो जाता है।”

गोल्डस्मिथ ने इस विपय में बहुत कुछ कहा है, पर हमने उसके कथन का सारांश बहुत ही थोड़े शब्दों मे दे दिया है। इससे प्रकट है कि नई कविता-प्रणाली पर भृकुटी टेढ़ी करने वाले कवि प्रकाण्डो के कहने की कुछ भी परवा न करके अपने स्वीकृत पथ से जरा भी इधर-उधर होना उचित नहीं समझते। नई वातो से घबराना और उनके पक्षपातियो की निन्दा करना मनुष्य का