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३-कवि और कविता
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पूर्वक प्रकट करे। पर काफिया और वजन उसकी स्वाधीनता में विध्न डालते हैं। वे उसे अपने भावो को स्वतन्त्रतापूर्वक नहीं प्रकट होने देते। काफिये और वजन को पहले ढूंढ कर कवि को अपने मनोभाव तदनुकूल गढ़ने पड़ते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रधान बात अप्रधानता को प्राप्त हो जाती है और एक बहुत ही गौण बात प्रधानता के आसन पर जा बैठती है। इससे कवि अपने भाव स्वतन्त्रतापूर्वक नहीं प्रकट कर सकता। फल यह होता है कि कवि की कविता का असर कम हो जाता है। कभी-कभी तो वह बिल्कुल ही जाता रहता है। अब आप ही कहिए कि जो वजन और काफिया कविता के लक्षण का कोई अश नहीं उन्हें ही प्रधानता देना भारी भूल है या नहीं?

जो बात एक असाधारण और निराले ढंग से शब्दो के द्वारा इस तरह प्रकट की जाय कि सुनने वाले पर उसका कुछ न कुछ असर जरूर पड़े, उसी का नाम कविता है। आज-कल हिन्दी में जो सज्जन पद्य-रचना करते हैं और उसे कविता समझ कर छपाने दौड़ते है, उनको यह बात जरूर याद रखनी चाहिए। इन पद्य-रचयिताओ मे कुछ ऐसे भी है जो अपने पद्यो को कालिदास, होमर और बाइरन की कविता से बढ़ कर समझते है। यदि कोई सम्पादक उन्हें प्रकाशित करने से इन्कार करता है तो वे अपना अपमान समझते है और बेचारे सम्पादक के खिलाफ नाटक, प्रहसन और व्यङ्ग-पूर्ण लेख प्रकाशित करके अपने जी की जलन शान्त करते है। वे इस बात को विल्कुल ही भूल जाते हैं कि यदि उनकी पद्य-रचना अच्छी हो तो कौन ऐसा मूरखे होगा जो उसे अपने पत्र या पुस्तक मे सहर्ष और सधन्यवाद न प्रकाशित करेगा?

कवि का सब से बड़ा गुण. नई-नई वातों का सूझना है। उसके लिए कल्पना ( Imagination ) की बड़ी जरूरत है । जिस