में जितनी ही अधिक यह शक्ति होगी वह उतनी ही अधिक अच्छी कविता लिख सकेगा। कविता के लिये उपज चाहिए। नये-नये भावों की उपज जिसके हृदय में नहीं वह कभी अच्छी कविता नहीं लिख सकता। ये बातें प्रतिभा की बदौलत होती हैं। इसी लिए संस्कृत वालों ने प्रतिभा को प्रधानता दी है प्रतिभा ईश्वरदत्त होती है। अभ्यास से वह नहीं प्राप्त होती है। इस शक्ति को) कवि माँ के पेट से लेकर पैदा होता है। इसी की बदौलत वह भूत और भविष्यत् को हस्तामलकवत् देखता है वर्त्तमान की तो कोई बात ही नहीं। इसी की कृपा से वह सांसारिक बातों को एक अजीब निराले ढंग से बयान करता है, जिसे सुन कर सुनने वाले के हृदयोदधि में नाना प्रकार के सुख, दुःख आश्चर्य आदि विकारों की लहरें उठने लगती हैं। कभी-कभी ऐसी अद्भुत। बातें कह देते है कि जो कवि नहीं है उनकी पहुँच वहाँ तक कभी हो ही नहीं सकती।
कवि का काम है कि वह प्रकृति विकास को खूब ध्यान से देखे। प्रकृति की लीला का कोई ओर-छोर नहीं। वह अनन्त है। प्रकृति अद्भुत खेल खेला करती है। एक छोटे-से फूल में वह अजीब अजीब कौशल दिखाती है। वे साधारण आदमियों के ध्यान में नहीं आते। वे उनको समझ नहीं सकते। पर कवि अपनी सूक्ष्म दृष्टि से प्रकृति के कौशल अच्छी तरह देख लेता है, उनका वर्णन भी करता है; उनसे नाना प्रकार की शिक्षा भी ग्रहण करता है, और अपनी कविता के द्वारा संसार को लाभ भी पहुँचाता है जिस कवि में प्राकृतिक दृश्य और प्रकृति के कौशल देखने और समझने का जितना ही अधिक ज्ञान होता है वह उतना ही बड़ा कवि भी होता है।
प्रकृति-पर्य्यालोचना के सिवा कवि को मानव-स्वभाव की आलोचना का भी अभ्यास करना चाहिए। मनुष्य अपने जीवन