उसके मन का भाव पूरे तौर पर व्यक्त हो जाय। उसमें कसर न पड़े। मनोभाव शब्दों ही के द्वारा व्यक्त होता है। अतएव युक्ति सङ्गत शब्द-स्थापना के बिना कवि की कविता तादृश हृदय-हारिणी नहीं हो सकती। जो कवि अच्छी शब्द-स्थापना करना नहीं जानता, अथवा यो कहिए कि जिसके पास काफी शब्द समूह नहीं है, उसे कविता करने का परिश्रम ही न करना चाहिए, जो सुकवि हैं उन्हें एक-एक शब्द की योग्यता ज्ञात रहती है। वे खूब जानते हैं कि किस शब्द में क्या प्रभाव है। अतएव जिस शब्द में उनका भाव प्रकट करने की एक बार भर भी कमी होती है उसका वे कभी प्रयोग नहीं करते। आजकल के पद्य-रचनाकर्ता महाशयों को इस बात का बहुत कम ख़्याल रहता है। इसी से उनकी कविता, यदि अच्छे भाव से भरी हुई भी हो तो भी,बहुत कम असर पैदा करती है। जो कवि प्रति पंक्ति में निरर्थक 'सु' 'जु' और 'रु' का प्रयोग करता है वह मानों इस बात का खुद ही सार्टिफिकेट दे रहा है कि मेरे अधिकृत शब्द कोश में शब्दों की कमी है। ऐसे कवियों की कविता कदापि सर्व-सम्मत और प्रभावोत्पादक नहीं हो सकती।
अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि मिल्टन ने कविता के तीन गुण वर्णन किये है। उनकी राय है कि कविता में सादगी हो, जोश से भरी हुई हो, और असलियत से गिरी हुई न हो।
सादगी से यह मतलब नहीं कि सिर्फ शब्द-समूह ही सादा हो, किन्तु विचार-परम्परा भी सादी हो। भाव और विचार ऐसे सूक्ष्म और छिपे हुए न हो कि उनका मतलब समझ में न आवे, या देर से समझ में आवे। यदि कविता में कोई ध्वनि हो तो इतनी दूर की न हो, जो उसे समझने में गहरे विचार की ज़रूरत हो। कविता पढ़ने या सुनने वाले को ऐसी साफ-सुथरी सड़क मिलनी चाहिए जिस पर कंकड़, पत्थर, टीले, खन्दक, काँटे और