पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
रसज्ञ रञ्जन
 


जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते ।
 
पिय-बिनु तियहि तरणि ते ताते ॥
तनु धन धाम धरणि पुर राजू ।
 
पति विहीन सब शोक समाजू ॥

.

भोग रोग सम भूषण भारू ।
 
यम-यातना सरिस संसारू ॥
प्राणनाथ तुम बिनु जग माही।
 
मो कहं सुखद कतहुँ कोउ नाहीं ॥
जिय बिनु देह नदी बिनु बारी ।
 
तैसिय नाथ पुरुष बिनु नारी ॥
नाथ सकल सुख साथ तुम्हारे ।
 
शरद-विमल-बिधु-बदन-निहारे ॥
खग मृग परिजन नगर बन, बलकल बसन दुकल।
 
नाथ साथ सुर-सदन सम, पर्णशाल सुखमूल ॥
 
वनदेवी वनदेव उदारा ।
 
करिहैं सासु ससुर सम प्यारा ॥
कुश-किशलय साथरी सुहाई ।
 
प्रभु संग मञ्जु मनोज तुराई ॥
कन्दु मूल फल अमिय अहारू ।
 
अवध सहस सुख सरिस पहारू ॥
क्षण-क्षण प्रभु-पद-कमल विलोकी।
 
रहि हौ मुदित दिवस जिमि कोकी ॥
वन दुख नाथ कहेउ बहुतेरे ।
 
भय विषाद परिताप घनेरे ॥
प्रभु-वियोग लवलेश समाना ।
 
सब मिलि होहिं न कृपानिधाना ।।