अनुमति पाकर, वहाँ से प्रस्थान किया। राजा भी नगर की तरफ लौटा, परन्तु शरीर मात्र से, मन से नहीं। मन उसका हंस ही के साथ उड़ गया था।
हंस के वियोग में नल को बड़ा दुःख हुआ। दिन-रात वह उसी का चिन्तन करने लगा। किसी काममें उसका दिल न लगने लगा। इस समय बसन्त का आविर्भाव हुआ। इससे उसे और भी अधिक पीड़ा हुई। बसन्त विरहियों का वैरी है। अतएव दिल बहलाने के लिये, अपने उद्यान में, एक वावली के किनारे, राजा जा बैठा। वहाँ वह सैकड़ों तरह की भावनाएँ कर रहा था कि सहसा उसका परिचित वही हंस वहाँ आता हुआ उसे देख पड़ा। राजा को परमानन्द हुआ। उसे खोई हुई निधि-सी मिली। नल ने उस दिव्य हंस को अपनी गोद में विठाला। कुशल समाचार पूछने के अनन्तर राजा ने उसे अपने हाथ से मृणालांकुर खिलाये रास्ते की उसकी सारी थकावट जाती रही। नल ने हंस से सुना कि स्वर्गलोक में जितने शहर, गाँव और कस्वे हैं, सबमें उसके यशोगीत गाये जाते हैं। गन्धर्व नारियों किन्नरियों और सुराङ्गनाओं को अब और किसी विषय के गीत अच्छे नहीं लगते। औरों को लोग सुनते भी नहीं। इससे गायक और गायिकाएँ बहुधा यहाँ आती है, उसके नये नये चरित्र सुनती हैं, और उन्हीं के आधार पर श्लोक, गजल और गीतों की वे रचना करती हैं।
मामूली बातें हो चुकने पर हंस ने मतलब की बात शुरू कीं, जिसे सुननेके लिये नल घबरा रहा था। उसने कहा—मित्र,तेरे लिए एक अनन्य-साधारण कन्या ढूँढ़ने में मुझे बड़ी हैरानी, उठानी पड़ी। ऊपर जितने लोक हैं; सबकी खाक मैंने छान डाली। पर एकभी सर्वोत्तम रूपवती मुझे न देख पड़ी। तब मैंने