उर्म्मिला याद न आई। उसकी क्या दशा थी, वह कहाँ पड़ी थी, सो कुछ भी आपने न सोचा इतनी उपेक्षा!
लक्ष्मण ने अकृत्रिम भ्रातृस्नेह के कारण बड़े भाई का साथ दिया। उन्होंने राज-पाट छोड़ कर अपना शरीर रामचन्द्र को अर्पण किया। यह बहुत बड़ी बात की। पर ऊर्मिला ने इससे भी बढ़ कर आत्मोत्सर्ग किया। उसने अपनी आत्मा की अपेक्षा भी अधिक प्यारा अपना पति राम-जानकी के लिए दे डाला और यह आत्मसुखोत्सर्ग उसने तब किया जब उसे ब्याह कर आये हुए कुछ ही समय हुआ था। उसने अपने सांसारिक सुख के सबसे अच्छे अंश से हाथ धो डाला। जो सुख विवाहोत्तर उसे मिलता उसकी बराबरी १४ वर्ष पति वियोग के बाद का सुख कभी नहीं कर सकता। नवोढ़त्व को प्राप्त होते ही जिस उर्म्मिला ने, रामचन्द्र और जानकी के लिए, अपने सुख सर्वस्व पर पानी डाल दिया उसी के लिए अन्वदर्शी आदि कवि के शब्द-भण्डार में दरिद्रता?
पति-प्रेम और पति-पूजा की शिक्षा सीतादेवी को जहाँ मिली थी वहीं उम्मिला को भी मिली थी। सीतादेवी की सम्मति
जह लगि नाथ नेह अरु नाते।
पिय बिनु तियहि तरनि ते ताते॥
उर्म्मिला की क्या यह भावना न थी? ज़रूर थी। दोनों एक ही घर की थी। ऊर्म्मिला भी पतिपरायणता-धर्म्म को अच्छी तरह जानती थी। पर उसने लक्ष्मण के साथ बन-गमन की हठ, जान-बूझ कर नहीं की। यदि वह भी साथ जाने को तयार होती, तो लक्ष्मण को अपने अग्रज राम के साथ उसे ले जाने में संकोच होता, और ऊर्मिला के कारण लक्ष्मण अपने उस आराध्य-युग्म की सेवा भी अच्छी तरह न कर सकते। यही सोच कर मिला ने सीता का अनुकरण नहीं किया। यह बात उसके चरित्र की