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रसज्ञ-रञ्जन
 

को सीता देवी पूछ रही है। उन्होंने सीता के प्रश्न का उत्तर दिये बिना ही ऊर्म्मिला के चित्र पर हाथ रख दिया। उनके हाथ से वह ढक गया। कैसे खेद की बात है कि ऊर्म्मिला का उज्ज्वल चरित्र-चित्र कवियों के द्वारा भी आज तक इसी तरह ढकता आया।

 


 

९—नल का दुस्तर दूत कार्य

प्राचीन समय में भारत का अधिकतर अंश जिसे आजकल कमायूँ कहते हैं निषद देश के नाम से प्रसिद्ध था। अलका उसकी राजधानी थी। उसमें वीरसेन का पुत्र नल नामक एक महाप्रतापी राजा राज्य करता था।

नल, एक दिन, मृगया के लिए राजधानी से बाहर निकला। आखेट करते-करते वह अकेला दूर तक अरण्य में निकल गया। वहाँ उसने एक बड़ा मनोहर जलाशय देखा। उसके तट पर एक अलौकिक रंग रूपधारी हंस, थक जाने के कारण, आँखे बन्द किए; बैठा आराम कर रहा था। नल की दृष्टि उस पर पड़ी। चुपचाप, दबे पैरों, जाकर राजा ने उसे पकड़ लिया। हंस का विचरण-स्वातन्त्र्य जाता रहा। पराधीनता के दुख और अपनी स्त्री तथा माता के वियोग-जन्य ताप की चिन्ता से वह व्याकुल हो उठा। उसने बहुत विलाप किया। मुक्ति दान देने के लिये राजा से उसने प्रार्थना भी की और एक तुच्छ पक्षी पर अनु-