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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/९३

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९—नल का दुस्तर दूतकार्य्य
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चित बल प्रयोग करने के लिए उसकी भर्त्सना भी की। राजा को दया आई। उसने उस हंस को छोड़ दिया।

हंस इस पर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा—मैं एक असाधारण पक्षी हूँ। आपने मुझे छोड़ दिया, इसका मैं प्रत्युपकार करना चाहता हूँ। आप अभी तक अविवाहित हैं अतएव आप ही के सदृश अलौकिक रूप-लावण्यवती सुन्दरी दमयन्ती को आप पर अनुरक्त कराने की मैं चेष्टा करूँगा। आपका कल्याण हो। मैं चला। अपने उद्योग की सफलता का संवाद सुनाने के लिए शीघ्र ही मैं लौट कर आपके दर्शन करूँगा।

नल से विदा होकर हंस ने विदर्भ देश—आधुनिक बरार—की राह ली। वहाँ के राजा भीम की कन्या दमयन्ती उस समय त्रिभुवन में एक ही सुन्दरी थी। उसकी रूपराशि का वर्णन करके, हंस ने नल को दमयन्ती पर अनुरक्त किया था। अब उसे दमयन्ती को नल पर अनुरक्त करना था। आकाश मार्ग से हंस शीघ्र ही विदर्भ देश की राजधानी कुण्डिनपुर पहुँचा। दमयन्ती उस समय अपने क्रीड़ा-स्थान में सखियों के साथ खेल रही थी। हंस मनुष्य की बोली बोलना जानता था। एकान्त में नल के सौन्दर्य, बल-वैभव और पराक्रम आदि का वर्णन दमयन्ती को सुना कर हंस ने उसे नल के प्रेम-पाश में फाँस लिया। यही नहीं, उसने दमयन्ती से यह वचन तक ले लिया कि मर चाहे जाऊँ पर नल को छोड़ कर और किसी से विवाह न करूँगी।

यह सुख-समाचार नल को सुना कर हंस अपने आवास को चला गया। इधर नल की चिन्तना ने दमयन्ती को अतिशय सन्तप्त कर दिया। एक दिन विरह-व्यथा से अत्यन्त व्यथित होकर वह मूर्छित हो गई! पिता भीम उसके पास दौड़े आये। कन्या की दशा देख कर उसके सन्तात का कारण वे ताड़