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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/९४

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रसज्ञ-रंजन
 

गये। उन्होंने शीघ्र ही उसका विवाह कर डालना चाहा। स्वयंवर की तिथि निश्चित हुई।

स्वयंवर में शरीक होने के लिए देश-देश के नरेश चले। नल ने भी अलका से कुण्डिनपुर के लिए प्रस्थान किया। उधर नारद से स्वयंवर का समाचार और भैमीं का सौन्दर्य-वर्णन सुन कर उसे पाने की इच्छा से, इन्द्र ने भी देवलोक से प्रस्थान किया। उसके पीछे यम, वरुण और अग्नि भी चले। मार्ग में उन चारों की भेंट नल से हुई। नल की भुवनातिव्यापिनी सुन्दरता देख कर उन देवताओं के होश उड़ गये। उन्होंने इस बात को निश्चित समझा कि नल के होते दमयन्ती कदापि उनके कण्ठ में वरमाला न पहनायेगी। अतएव, कपट कौशल की ठहरी। नल की दान-शूरता आदि की प्रशंसा करके इन्द्र महाराज नल के याचक बने। आपने नल से याचना की कि तुम हमारे दूत बन कर दमयन्ती के पास जाओ और हमारी तरफ से ऐसी वकालत करो, जिसमें वह हमीं चारों में से किसी एक को अपना पति बनाये।

इस प्रार्थना पर नल को महादुःख हुआ। उसे क्रोध भी हो आया। उसने इन्द्रादि के इस कार्य की बड़ी निन्दा की। अपना सच्चा हाल भी उसने कह सुनाया। संकल्प द्वारा मुझे ही दमयन्ती अपना पति बना चुकी है यह भी नल ने साफ-साफ कह दिया। भीम-भूपाल के अन्तपुर में दूत बन कर जाने की असम्भवता का भी नल ने उल्लेख किया। पर इन्द्र ने एक न मानी। उस समय उसे उचित-अनुचित का कुछ भी ध्यान न रहा। फिर उसने नल की चाटुकारिता आरम्भ की। आजिज आकर नल ने इन्द्रादि देवताओं का दूत बनकर दमयन्ती के पास जाना स्वीकार कर लिया। इन्द्र ने नल को एक ऐसी विद्या सिखला दी जिसके प्रभाव से, इच्छा करने पर, वह और लोगों की दृष्टि से अदृश्य