पंचम प्रभाव १०६ चितवन में बीसो बिस्वा ( पूर्ण रीति से, निश्चय ही) विष भरा हुआ है. ( नहीं तो ऐसा क्यों होता)। सूचना-विष खानेवाले का शरीर कभी ठंढा पड़ता है, कभी गरम हो जाया करता है, कभी जान निकल गई सी जान पड़ती है, इसलिए यहां पर विष के प्रभाव और चितवन के प्रभाव का साम्य दिखलाकर चितवन का विष होना कहा गया है। अलंकार-रूपक, काव्यलिंग । श्रीकृष्णजू को वचन राधिका की सखी प्रति-( कबित्त । (१४२) प्यास हे रही उदास, भागी भूख गहि त्रास, केसौदास नींदहू की निंदा नित ठानी है। मति को मतौ न लेय विद्या की बिदाई देय, सोभा सुकी सेय सेय सब सुख सानी है। विष से लगत गीत, केलि की न परतीत, प्रीत उर पाहुनी सी पचि पहिचानी है। तो बिन कहे को गाथ धीरता न ताके साथ, मोहिं को मिलावै हाथ लाज के बिकानी है।३। शब्दार्थ-नींदहूँ ..ठानी है = अर्थात् निद्रा भी नहीं आती। मतो राय, संमति । भावार्थ-( नायक की उक्ति सखी से ) उस ( नायिका ) की प्यास उदास हो गई है, भूख भयभीत होकर भाग गई है, निद्रा की भी नित्य निंदा करती है । अर्थात् प्यास-भूख और नींद नहीं हैं )। बुद्धि की सलाह नहीं लेती, विद्या को भी बिदाई दे दी है ( न बुद्धि ठिकाने है और न विद्या से ही काम ले रही है)। सोभारूपी सुग्गी को सेने में ध्यान लगाकर सुख का अनुभव कर लेती है (अन्यथा दुख ही दुख है) । गीत (गान) तो उसे विष से जान पड़ते हैं, केलि (क्रीड़ा ) का भी विश्वास जाता रहा । प्रीति बड़ी कठि- नाई से नई आई पाहुनी की तरह उसके द्वारा पहचानी गई है। तेरे बिना समाचार कोन कह सकता है ? उसके पास धीरता नहीं हैं। मुझे उस कौन मिला सकता है ? वह तो इस समय लज्जा के हाथ बिक गई है। अथ चेष्टा-लक्षण-( दोहा) (१४३) पिय सों प्रगटन प्रीति कह, जितने करौ उपाय । ते सब केसवदास अब बरन सबनि सुनाय ।४। ३-गहि त्रास-गई बास | नित-दिन | सोभा०- सेज सूनी । सुख-दुख । धीरता०-धीरजता ले के साथ । ४-करो-करहि, करत । बरनौं-बरनत ।
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