पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१०९

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शब्दार्थ- रसिकप्रिया शब्दार्थ-पिय = प्रिय, नायक । प्रगटन प्रीति कहें = प्रेम को प्रकट करने के लिए। करौ%किए जाते हैं । (१४४) जब चितवै पिय अनत ही, तब चितवै निहसंक । जानि विलोकत आपु त्यों, अलिहि लगावै अंक ।। '-अनत = भन्यत्र । निहसंक = निःशंक, शंकारहित । आपु त्यों - अपनी ओर । अलिहि-सखी को । अंक अँकवार छाती ( से )। कबहूँ श्रुति-कंडू करै, आरस सों ऐंडाइ । केसवदास बिलास सों, बार बार जमुहाइ ।। शब्दार्थ-श्रुति-कंडू कान खुजलाना। पारस =आलस्य । ऐंडाइ = देह तोड़ती है । बिलास = भावभंगिमा, आकर्षक चेष्टा । जमुहाइ = जंभाई लेती है। ((१४६) मूठेहीं हँसि हँसि उठे, कहै सखी सों बात । ऐसें मिसहीं मिस प्रिया, पियहि दिखावै गात ।। शब्दार्थ-मिस = बहाना । प्रिया=नायिका । यों ही पीय पियानि प्रति, प्रगटत अपनी प्रीति । सो प्रच्छन्न प्रकास करि, बुधिवल करत समीति ।। शब्दार्थ-पीय = नायक । करि = भेद करके । समीति करत = एकत्र करते हैं। श्रीराधिकाजू की प्रच्छन्न चेष्टा, यथा -(कबित्त) (१४८) चोरि चोरि चित चितवति मुंह मोरि मोरि, काहें तें हसति हियें हरष बढ़ायो है। केसौदास की सौं तूं जंभाति कहा बार बार, बीरी खाइ मेरी बीर आरस जौ आयो है। एंड सों एँडाति अति अंचल उड़ात, उर उघरि उघरि जात गात छवि छायो है। फूलि फूलि भेंटति रहति उर मूलि मूलि, भूलि भूलि कहति कछू ते आज खायो है। शब्दार्थ-चोरि चोरि = चुरा चुराकर । एंड = गर्व की मुद्रा। उर= वक्षःस्थल । फूलि फूलि = प्रसन्न हो होकर । उर = हृदय में। झूलि अलि झूम झूमकर। ५-निहसंक-निरंसक | ७-प्रिया-तिया। ५-यो-यो । प्रगटत-- प्रगट। करत-कहत । १-केसौगस-केसोराइ । जो-त्यौ । बोरो०.बिस खाइ मेरी बोर और जोर प्रायो है । उड़ात-उठात । उरि०-उरज उघरि जात खायो-पाय ।