११२ रसिकप्रिया अलंकार-पिहित । श्रीकृष्णजू की प्रच्छन्न चेष्टा, यथा-( कबित्त ) (१५०) छोरि छोरि बाँधौ पाग आरस सों आरसी लै, अनत ही आन भाँति देखत अनैसे हो तोरि तोरि डारत तिनूका कहौ कौन पर, कौन के परत पाइ बावरे ज्यों ऐसे हौ। कबहूँ चुटकि देति चटकि खुजावौ कान, मटकि ऐंडाउ जुरी ज्यों जंभात तैसे हौ। बार बार कौन पर देत मनिमाला मोहि गावत कछू के कछू आज कान्ह कैसे हो ।११. शब्दार्थ-पाग = पगड़ी । पारसी = (आदर्श) दर्पण । अनत = अन्यत्र । प्रान भांति = दूसरे ढंग से । अनैसे = (अनिष्ट) बेढंगे। तिनका-तिनका । चुटकि: देत - चुटकी बजाते हो। चटकि =जल्दी से । जुरी-ज्वरी, ज्वरग्रस्त। जुरी. 10 =ज्वर से पीड़ित व्यक्ति की भांति जंभाते हो। कोन पर किसके लिए। (१५१) श्रीकृष्णजू की प्रकाश चेष्टा, यथा-( सवैया ) जा लगि लाँच लुगाइनि दै दिन नाच नचावत साँझ पहाऊँ। केसव मंत्र करौ बसकारक हारक जंत्र कहाँ लौं गनाऊँ। हारि रहे हरि क्योहूँ मिली न मिलाऊँ जौ ताहि तो माँगौं सो पाऊँ । ठाढी वै जाइ मिलौ मिलिबे कहँ और कछू कनियाँ करि लाऊँ ।१२। शब्दार्थ-लांच = धूस, रिश्वत । दिन = नित्य, प्रतिदिन । पहाऊँ = सबेरे । हारक- थका देनेवाले । भावार्थ-( सखी की उक्ति नायक प्रति ) जिसको आपने वश में करने के लिए नित्य दूतियों को घूस देकर सांझ-सबेरे नाच नचाया (परेशान किया), फिर आपने अनेक वशीकरण मंत्रों का प्रयोग किया तथा थका देने वाले जंत्रों का भी प्रयोग किया, मैं कहाँ तक उनकी गिनती करूं। आप अब हार मान बैठे, वह किसी प्रकार मिली नहीं। ऐसी नायिका को यदि मैं आपसे ला मिलाऊँ तो अवश्य ही जो माँगू वह मिलेगा (तुझे इसका पूरा विश्वास है)। अच्छा जाइए, वे मिलने को खड़ी हैं, क्या उन्हें गोद में लाना पडेगा ? प्रभात, ११-बाँधौ-बाँधै । कहो-तुम । ऐंडाउ-पौंडाउ, ऐंडात | तैसे-वैसे, जैसे। के-को । १२-लाँच-लोच । पहाऊ-महाऊँ । हारक-हारे कै । क्यों हूं-केहूँ। सो-सु । जाइ-जाहु । कछू-कहा । लाऊँ ल्याऊँ।
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