रसिकप्रिया भली बात केसव ढूँढ़ति यों उर में मतिमूढ भयो गुन गूढ पढ़यो सो। को कर साज बजावै को बीनहि याको कछूचित चाकचढ़योसो।२६॥ शब्दार्थ-सुहाइ न - अच्छा नहीं लगता। नीकियो बात = भी, सीधी सरल बात भी । सुनें = सुनने पर । मनौ० = मानो मन किसी के प्रेम में मढ़ गया है । ढूंढ़ति = अपने हृदय के भीतर वह वैसे ही कुछ ढूंढ़ती सी रहती है जैसे कोई गूढ गुण पढ़ने के अनंतर मतिविभ्रम हो जाने पर हृदय के भीतर कुछ खोजा करता है । को = कौन । साज = वाद्य को बजाने के निमित्त व्यवस्थित करना । बीनहि = वीणा को। चाक = चक्र। चाकचढ़यो = भ्रमित । श्रीराधिकाजू की प्रकाश स्मृति, यथा-( सवैया ) (३०८) मेरे मिलाएही मिलिहौ मनमोहन सों मन मोहि न दीजै । मौनहि मौन बनै न कछू अब क्यों मन मानद के रस भीजै । ऐसे ही केसब कैसे जियै अहो पान न खाहु तौ पान्यौ न पीजै । जानिहै कोऊ कहा करिहौ तब सोच न एतौ सकोच तौ कीजै ।२७। शब्दार्थ-मिलाएही पै = मिलाने पर ही। मोहि = मोहित होकर । मौनहि० = चुप्पी साधे रहने से तो काम नहीं बन सकता । क्यों किस प्रकार । मानद = प्रिय । रस-प्रेम । रस भीजै० - प्रेम में डूबे । पान्यौ = पानी भी। जानिहै कोऊ = कोई जान जायगा । सोच = भय । संकोच = लज्जा । भावार्थ-(सखी की उक्ति नायिका से) मेरे मिलाने पर ही उन (नायक) से मिलना होगा । मनमोहन पर मोहित होकर इस प्रकार मन देना ठीक नहीं इस प्रकार चुप्पी साधे रहने से भी काम न चलेगा । मौन रहने से भला प्रिय के प्रेमरस में मन कैसे भींग सकता है ? तुम (जो खाना-पीना छोड़ बैठी हो सो) इस प्रकार जी कैसे सकोगी? यदि पान नहीं खाती हो तो क्या पानी भी नहीं पीना चाहिए ? यदि कोई जान जाएगा तो क्या करोगी? लोगों के जानने का यदि भय नहीं है तो ( कम से कम) लोगों का संकोच तो करना ही चाहिए। श्रीराषिकाजू की प्रच्छन्न स्मृति, यथा-( सवैया ) (३०६) घोरि घनो धनसार धस्यो घनस्याम सु चंदन छवै तन तूल्यो । केसव कुंज को कूल चितै प्रतिकूल भयो सुभ फूलनि फूल्यो । भूले से डोलत बोलतहूँ उत जात कितै मन संभ्रम भूल्यो । जानति हौं यह काहू के आजु मनोहर हार हिँ डोरनि मूल्यो ।२८। शब्दार्थ -धनसार = कपूर । घस्यो = लगाया । तन तूल्यो= शरीर के २६-मोह-मोद । मति-मन । याको-बाको । चाक-चक्र । २७-मिला- एहीं-मिलाए हिये । मोहि-मारि । एतौ-जौ तौ, तो हो। २८-छुवै-दै । भयो-भए । सुभ-सब । मनोहर-मनो हरि । ?
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