पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१८२

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नवम प्रभाव अथ मान-लक्षण-( दोहा ) (३३६) पूरन-प्रेम-प्रताप तें, उपजि परत अभिमान । ताकी छबि के छोभ तें, केसव कहियत मान ।१। शब्दार्थ- -प्रताप तें = प्रभाव से, कारण। छबि के छोभ तें = उसकी छटा के उद्रेक से। (३४०) प्रकटहि पिय प्रति मानिनी, गुरु लघु मध्यम मान । प्रकटहिं पीय प्रियानि प्रति, केसवदास सुजान ।२। शब्दार्थ-पिय, पीय = प्रिय, नायक । प्रियानि प्रति प्रियाओं के प्रति, नायिकाओं के प्रति अथ गुरुमान लक्षण-( दोहा) (३४१) श्रान नारि के चिह्न लखि, अरु सुनि स्रवननि नाउँ । उपजत है गुरुमान तहँ, केसवदास सुभाउँ ।३। शब्दार्थ -पान = (अन्य ) दूसरी। स्रवननि = अपने कानों से किसी दूसरी नायिका का नाम सुनकर | नाउँ = नाम ( गोत्रस्खलन )। सुभाउँ = स्वभाव से। श्रीराधिकाजू को प्रच्छन्न गुरुमान चिह्न-दर्शन तें यथा-( सवैया ) (३४२) आजु मिले बृषभानुकुमारिहि नंदकुमार बियोग बितेकै । रूप की रासि रस्यो रस केस व हास-बिलासनि रोस रितैकै । बागे के भीतर देखि हियें नख नैन नवाइ रही सु इतै के। फूलिहि में भ्रमि भूलि मनो सकुचे सरसीरुह चंद चितैकै ४। शब्दार्थ-बियोग = वियोगजन्य दुःख, विरह । वितैकै = व्यतीत करके, दूर करके । रस रस्यो = आनंद प्राप्त किया। रोस रितेकै = रोषशून्य करके, दूर करके । बागा=पोशाक, वस्त्र । इतै कै = इधर की अोर करके, अपनी ओर करके । फूलिहि में = फूलते ही समय । भ्रमि = धोखे में पड़कर । भावार्थ-(सखी की उक्ति सखी से) आज श्रीकृष्ण राधिका से वियोग- जन्य दुःख दूर करते हुए ( परम प्रेम से) मिले और हास-विलास में रोष को दूर करते हुए उन्होंने रूपवती ( राधा ) के प्रेम का आनंद प्राप्त किया। किंतु संयोग से वस्त्रों के भीतर श्रीकृष्ण के हृदय पर नखक्षत देखकर उन्होंने इस प्रकार उधर से अपने नेत्र हटाकर नीचे कर लिए मानो कमल के दो फूल जिस १-छोम तें-छोभ सों। २-प्रकटहि-मानभेद प्रकटहि प्रिया । ३-के -को । अरु-क । ४-हिये-नखच्छत । नैन-रेख बनाइ । सकुचे-सकुच्यो । -