नवम प्रभाव १८९ शब्दार्थ- 1-सयान = सयानापन, चतुराई । अयान: मूढ़ता, अज्ञान, भोलापन । मानस = मनुष्य । पैसे । सियरी = ठंढी । भावार्थ-( सखी की उक्ति नायक से ) हे कन्हैया, तुम्हारी उस प्राण- प्यारी की बातें कुछ खुलती नहीं-उसका सयानापन या भोलापन सब उसके मन में ही रहता है । यह मान है या अपमान, अभी तो मनुष्य इसका अनुमान लगा ही नहीं सकता ( पता नहीं चलता कि बात क्या है ? )। न तो सुख का पता चलता है न दुख का, न रोष अर्थात् उदासी का ही पता चलता है न हँसी या प्रसन्नता का । ( पूछने पर ऐसे ढंग से बोलती है कि ) न 'हाँ' का पता चलता है न 'नहीं' का। क्षण भर में तो वह ठंढी (शांत ) पड़ जाती है और क्षण भर में गरम ( उग्र ) हो उठती है। वह तो अपना रंग ढंग उसी प्रकार बदल रही है जैसे बादलों की छाया ( थोड़ी देर तक छाया रहती है फिर हट जाती है, फिर आती है फिर हटती है ) । सूचना-जिस अवस्था का वर्णन किया गया है उससे मान व्यंजित होता है । शब्दों द्वारा साफ साफ नहीं कहा गया है इसलिए प्रच्छन्न है । सखी कृष्ण को किसी बात का उलाहना नहीं दे रही है, इससे जान पड़ता है कि नायिका ने श्रीकृष्ण का अन्य स्त्री से प्रेम किसी से सुना है, अतः लघुमान है। श्रीराधिकाजू को प्रकाश लघुमान, यथा-( कबित्त ) (३४६) मूठहूँ न रूठियै री ईठ सों इतै कहा ब, नेक पीठ देत ईठ कौन के भए अली। कालि केतौ नंदलाल मोसों घालि लालि करें, कालि ही न आई ग्वारि जो पै तूं हुती भली । आजुहीं जु बीच परी बीच पारिबे कौं माई, आन रंग आन भाँति ज्यों कनेर की कली। तेरे ही कहे की कोऊ साखि है जु बूझियै री, देखिये आँखि ताकी साखि की कहा चली ।१२। शब्दार्थ-ईठ = प्रिय, स्वामी, पति । पीठ देत = विमुख होने पर । मो. सों घालि = मुझे बीच में डालकर, मेरे माध्यम से। लालि = मिन्नत,लालसा । बीच पारिबे कौं-भेद डालने को। कनेर = कनैल का फूल । साखि = साक्षी, गवाह । ११-इते०रतो कहा बनै कुडोठि पोठि देत ईठ कौन के अली । देत- देइ । नन्दलाल-केसौराइ नन्दलाल लालि करे । जो पै-ये तो । प्रान भांति- पानमति , आन रंग । ताकी-ताको०-ताहि०, साखि बूंझिबे की। .
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