पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२२५

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२३० रसिकप्रिया . माखन सी जीभ, मुख कंज सो कोवर, कहु काठ सी कठेठी बातें कैसे निकरति हैं ॥१५॥ शब्दार्थ-मैन =( मदन) मोम । मृदु= कोमल । मृनालिका= कमल- नाल। सूत = कमलनाल तोड़ने से जो पतले सूत दिखाई पड़ते हैं । सुर- धुनि% स्वर की ध्वनि (मधुर राग) । मननि मनों को। दारयो = (दाडिम) मनार । पान = (पर्ण) पल्लव । देखे०= प्रांखों से देख लेने पर हृदय में आनंद भर देती है । एरी= एरी सखी । बूझति हौं= पूछती हूँ। और०% और हम पूछते हुए हृदय से डरती हैं। कंज= कमल। कोवर = कोमल । कठेठी = कठोर । निकरति० % निकलती है । अलंकार-विभावना। सूचना-पान' कहने से बरइन है। बरइनि को वचन कृष्ण सों, यथा-(कबित्त) (४२७) नैननि नवावौ नेक अति ही अनीति करें, जानति न तुम जैसें ब्रज जानियत हैं। चंचल चरित्र चित्त, चेटक चटकि लावौ, चेरे कै चितनि अभिसार सौंपियत हैं। एकनि के पैठे उर, उररि उरोजन में, डर डोलें केसौदास कैसें वै जियत हैं। ऐसी कहूँ होति है जो बालनि के चोरि चोरि मन मनमथ ही के हाथ बेचियत हैं।१६। शब्दार्थ-नवावौ नेक = थोड़ा दबाओ, रोको । अनीति = अन्याय । चेटक: जादू । चटकि = शीघ्रता से । अभिसार०=अभिसार को सौंप देता है, चक्कर में डाल देता है या अभिसार के लिए प्रेरित करता है। पैठे%3D घुसे । उररि= उलझकर । बालनि = नायिकाओं ( अजागंनाओं)। भावार्थ-हे प्यारे, भला ऐसा भी कहीं किया जाता है ? तुम व्रजांग- नामों के मन चुरा चुराकर उन्हें काम के हाथ बेच देते हो। इन नेत्रों को १५-मृदु-तब । के-से। ऐसी-कैसे। मनहि-मन को, मननि । पान से०-पान सो बिब से अरुन । केसौदास०--देखि देखि केसौदास | मेरी- बीर । और-उर । कोवर--कुवरि, कुवर, कोमल । १६~-नवावी-नवंबो। प्रति हो-निपट । न-हो। ब्रज--जग । चेटक०--चेटकी चटका गायो । चेरे के-चौरि के उररि-उरभि । डर०--उरझे तें । केसौदास- केसौराइ । वै--ति । के चोरि०-की चोरीचोरी, के चोराचोरी । मन-चित मति मनमथ हाथ, मन मनमय चाका उदरु,