पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२५८

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२६२ रसिकप्रिया को मानसरोवर त्याग देना पड़ा, बेल कठोर हो गया, केसर पीली पड़ गई, अनार का हृदय फट गया । कनक - सोना (वर्ण) । तन = शरीर । तनक०%3D थोड़ा थोड़ा करके अर्थात् ( अत्यंत कष्ट सहकर ) । मसि = चंद्रमा ( मुख )। घटत बढ़त भय से घटता है, कृपा करेंगी इस प्राशा से बढ़ता है । अंबुजीव = फूल दुसहरिया, गुल्लाला (तलवों की ललाई )। गंधहीनो = गंधरहित । कोबिद = पंडित, चतुर । वचन--सखी की उक्ति सखी से। राधिका के निकट ही वह दूसरी सखी से ये बातें करती है जिससे कोप छूट जाय । सूचना-राधिका ने सौत पर कोप किया है। श्रीकृष्ण जू को रौद्ररस, यथा-( कबित्त ) (४८६) मीडि मारयो कलह, वियोग मारयो बोरिकै, मरोरिमारथो अभिमान भारथो भय मान्यो है। सवको सुहाग अनुराग लटि लीनो दीनो, राधिका कुवरि कहँ सब सुख सान्यो है कपट कपटि डारयो निपट के औरनि सों, मेटी पहिचानि मन में हू पहिचान्यो है। जीत्यो रतिरन मथ्यो मनमथहू को मन, केसौदास कौन कहुँ रोष उर आन्यो है ॥२३॥ शब्दार्थ- मीडि मारयो कलह - कलह को मीजकर मार डाला। बोरिक = डुबोकर । भारयो भय भान्यो है = भारी भय को भी भंग कर डाला है। कपट - छल । कपटि डारयो=नोच लिया । निपट कै= एकदम ! मन में हू = मन से भी। मेटी पहिचानि मन में हू पहिचान्यो हैं = मन से भी जानने की पहचान मिटा दी है। भावार्थ-(सखी की उक्ति नायक से ) आपने कलह को मींजकर मार डाला, वियोग को डुबोकर मारा, अभिमान को मरोड़ फेंका, भारी भय का भी अंगभंग कर दिया, सबका सौभाग्य और अनुराग लूटकर राधिका कुमारी को देकर उन्हें सब प्रकार के सुख से युक्त कर दिया है । कष्ट को तो एकदम नोच कर फेंक दिया, औरों को मन द्वारा पहचानने की पहचान भी मिट। दी है औ: रति के युद्ध में कामदेव का भी मन मथ डाला है ( क्रोध करके जैसी वीरता दिखाई जाती है वैसी तो पाप दिखा चुके ) अब किसके लिए रोष हृदय में ले आए हैं ( अब किसे नष्ट करना या जीतना है )।( युद्ध के पक्ष में 'मीडि डारयो' आदि का शब्दार्थ लिया गया है, प्रकृत अर्थ इस प्रकार २३-मारचो-मारो। मैं हूँ-केहूँ । केसौदास-केसोराइ । कहु-हूँ ।