पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२७७

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षोडश प्रभाव २८१ . नायक-दही दे। नायिका-उधार तो दे चुकी । नायक-जब मोल लेकर खाएंगे तो दान ( कर ) कैसा ? नायिका-तो क्या बिना दिए ही आप बरबस ले लेंगे? नायक-(न दोगी) तो फिर आगे जा चुकी ( जाने न पाओगी )। नायिका -न जाएँगी न सही, घर ही लौट जाएंगी। नायक-तो समझ लो हमारा तुम्हारा मेल आज से टूट गया, ( समझ रखो कि अब तुमने हमसे ) बैर कर लिया है। नायिका-आपसे मेल-जोल था कब, बैर करने से तो बल्कि अच्छी ही रहेंगी। नायक-बैर करके क्या गोरस बेच लोगी ? नायिका-भला, बेचा या न बेचा, उड़ेल तो देंगी नहीं। सूचना-(१) यहाँ एक ( नायक ) तो अनुकूल बातें करता है और दूसरा (नायिका) प्रतिकूल, अतः दुःसंधान रस है । (२) कविप्रिया ( प्रभाव ३,३६ ) में यही छंद हीनरस के उदाहरण में रखा गया है । (३) दीने बिना तो गई जु गई - सबका सब नायक का वचन मान लेने में संवाद का क्रम बिगड़ता है, क्योंकि 'दान कहा जब मोल ले खैहैं' भी नायक की ही उक्ति है । अलंकार :-उत्तर। अथ पात्रादुष्टरस-लक्षण-(दोहा ) (५२४) जैसो जहाँ न बूझिय, तैसो करियै पुष्ट । बिन बिचार जो बरनिये, सो रस पात्रादुष्ट ।१०। भावार्थ-जहाँ पर जिस प्रकार पुष्ट न करना चाहिए उस प्रकार से किसी बात की पुष्टि की जाय, इस प्रकार जहाँ विचारपर्वक वर्णन नहीं किया जाता वहाँ पात्रादुष्ट रस होता है । उदाहरण:-( कबित्त ) (५२५) कपट-कृपानी मानी प्रेम-रस लपटानी, प्राननि को गंगाजू के पानी सम जानिये । स्वारथ-निधानी परमारथ की राजधानी, काम की कहानी केसौदास जंग मानिये । सुबरन अरुझानी सुधा सों सुधारि आनी, सकल-सयान-सानी ज्ञानी सुखदानिये । गौरा औ गिरा लजानी मोहे मुनि मूढ़ पानी, ऐसी बानी मेरी रानी विष के बखानिये । ११ १०-जहाँ न-जाको । करिय--कोजे । पात्रादुष्ट-पातरदुष्ट |