पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२७९

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प्रतीकानुक्रमणो [ संख्याए प्रभावों एवम् छंदों की हैं । 'सू' का तात्पर्य 'सूचना में दिए हुए पद्यों से है। ] अंखियानि मिली।८।५० आजु मिले ।।४ मंग-बरन बिबरन 1८।४५ आजु मैं देखी।३।३८ अंतरिच्छ-गच्छनीनि ।४।११ आजु सखी हरि ।१४।११ अघ ज्यों उदारिहौ ।१४।२६ आतुर द्वै उठि ।४।१३ प्रति मादर ८१५६ आदर माँझ अनादरै ।३।५६ प्रति बिचित्र बिभ्रम ३१५३ आदराति तें।८५६ प्रति बिचित्रसुरता |३।३६ आन नारि के 18|३ सू अति रति-गति ।१।१२ पानन लोचन । ६३१ अति सलज्ज पग ७४२६ आपने सों। प्रति हित तें ।१०।१४ आपनेहीं भाइ ।५।१६ अदभुत वीर ॥१५॥ आपुनहीं तन |८१६ अधिक अनूढ़ा ।५।२२ आपुन हूजै ।१२।२० अधिक बरन ७।४३ आलंबन उद्दीप ।६।८ अपने अपने धर्म १६ आलिंगन चुंबन ।३।४१ अपस्मार मति ।६।१४ आलिनि माँझ ।।३७ अबहीं पुनि ।१२।१७ आवत जानिकै ।६।४३ प्रवही तो ।१२।७ आवत देखि लिये ।३।६० अभिमानी त्यागी/२।१ पावन कहि आवै।७।१६ अभिलाष सुचिंता [८९ आश्रम चारि ।१४ प्रवलोकन पालाप ।६७ इक तौ उर ४७ अवलोकनि अंकुस ।६।१६ इन ठौरनि ५२२५ पविलोकनि पालाप 11८ इहि विधि केसवदास कबि ।१५।१० मांखिनि जो सूझत ।७।१७ इहि बिधि केसवदास रस ।१६।१४ आँधी सी धाइ।१३।२० इहि बिधि बरन्यो ।१४१४१ माई है एक ।१४।१६ इहि बिधि मनन ।१०।२८ पाएं तें मावैगी ।११।१४ इहि बिधि राधा ।५।३८ मागे कहा करिहौ ।६।१३ इहि बिधि नायक ७१४१ प्राज विराजत (३१५८ इहि बिधि स्याम ।१३।२१ माजु कछू अंखियाँ ७१८ उत्तम मध्यम |७३४ माजु देवारि ।१३।१० उपजि परै भय ।१०११३