पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/६२

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रसिकप्रिया भावार्थ-( नायिका की उक्ति सखी से) हे सखी, शीतल वायु को हटा, चंद्रमा की चाँदनी को रोक, क्योंकि इसी प्रकार ( के पदार्थों ) से तो मेरा हर्ष खोया जा रहा है ( इनसे मुझे कष्ट हो रहा है )। फूलों को फेंक दे, कपूर को झाड़ डाल, ( घिसे ) चंदन को (अन्यत्र) उड़ेल दे, क्योंकि इनसे मेरे चित्त में चौगुनी पीड़ा होती है। मछली जल से रहित होकर अचेत होती है तो जल पाने पर ही जी सकती है । उसके ऊपर दूध छिड़कने से उसे क्या धैर्य होगा ( वह जल छिड़कने से ही जीती है, दूध से नहीं)। (नायक से मेरा वियोग हुआ है । अतः मैं उन्हीं को पाने पर जी सकती हूँ, इन उपचारों से नहीं )। तूने मेरी इस पीड़ा का मर्म समझ भी पाया है या यों ही इसके लिए उपचार कर रही है । ( क्या तू नहीं जानती कि । प्राग का जला हुअा अंग आग द्वारा ( सेंकने से ) ही ठंढा होता है। ( इन उपचारों से मेरी व्याधि दूर नहीं हो सकती, नायक के दर्शन होने पर ही इसका अंत होगा )। अलंकार-व्याघात ( शीतल उपचारों से विरहाग्नि के भड़कने से )। (२६) श्रीकृष्ण को वियोग-शृंगार, यथा-( सवैया) केसव रूठि रह्या तुमहीं सों किधों भय काहू के भीत भयो है। बेच्यो है काहू के हाथनि नाथ किधौं तुम काहू के साथ दयो है । मेरी सौं मा सहुँ भानहु बेगि इहाँ मनु नाहिं कहाँ पठयो है । साँची कहौ हरि हार्यो है काहू सों काहू हर्यो कि हिराइ गयो है ।२६। शब्दार्थ-सहुँ = से । भानहु = कहो। हिराइ० = खो गया है । (२७) श्रीकृष्ण को प्रकाश-वियोग-शृंगार, यथा- -( सवैया) बात कहैं न सुनें कछु काहू त्यों हेरें नहीं कोउ कैसे हूँ हेरो। खाइँ कछू न पियें कछु केसौ छुवै न कळू कर कोरो करेगे। हूलि उठी ब्रज बैठी कहा उठि आवहु देखि कह्यो करि मेरो। जानै को माइ कहाभयो कान्ह को जोग-सँजोग बियोग कि तेरो।२७। शब्दार्थ-कोरो-कोमल । करेरो = कठोर । जोग० योग की किसी 'क्रिया का प्रभाव। सूचना-संख्या २६-२७ नवलकिशोर प्रेस की प्रति में नहीं हैं। (२८) ( दोहा ) यों परछन्न प्रकास विधि, बरने जोग वियोग । अब नायक-लच्छन कहौं, गूढ अगूढ प्रयोग ॥२ २८-विधि-सब।