पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/६३

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द्विताय प्रभाव शब्दार्थ-जोग = संयोग । गूढ़ असाधारण । अगूढ=साधारण, सामान्य। इति श्रीमन्महाराजकुमारइंद्रजीतविरचितायाँ रसिकप्रियायाँ प्रच्छन्नप्रकाशसंयोग-- वियोग वर्णनं नाम प्रथमः प्रभावः । १ । . द्वितीय प्रभाव (२४) अथ साधारण-नायक लक्षण-(दोहा) अभिमानी त्यागी तरुन, कोककलानि प्रबीन । भब्य छमी सुंदर धनी, सुचिरुचि सदा कुलीन ।१॥ शब्दार्थ -तरुन = युवा । कोककलानि प्रवीन = कामशास्त्र में पंडित । भब्य = रूपवान् । छमी-क्षमाशील । सुचिरुचि-पवित्र रुचि (इच्छा) वाला। (३०) ये गुन केसव जासु में, सोई नायक जानि । अनुकुल दछ सठ धृष्ठ पुनि, चौबिधि ताहि बखानि ।२। शब्दार्थ-अनुकुल = अनुकूल । दछ = ( दक्ष ) दक्षिण । चौविधि = चार प्रकार के ( अनुकूल, दक्षिण, शठ और धृष्ट )। (३१) अथ अनुकूल-लक्षण-(दोहा) प्रीति करै निज नारि सों, परनारी-प्रतिकूल । केसव मन-बच-कर्म करि, सो कहिये अनुकूल ।३। (३२) अथ प्रच्छन्न-अनुकूल, यथा-( सवैया ) और के हास-बिलास न भावत साधुनि को यह सिद्ध सुभावै । बात वहै जु सदा निबहै हरि, कोऊ कहूँ कछु सोधु न पावै । आसन बास सुबासन भूषन केसव क्योंहूँ यही बनि आवै । मो बिन पान न खात जु कान्ह सु बैरु किधौं यह प्रीति कहावै ।४। शब्दार्थ-और-( अपर ) अन्य । हास-बिलास-हंसी-विनोद । साधु- सज्जन । सिद्ध सुभाव-निश्चित प्रकृति ही है। सोधु-पता । बास = वस्त्र । सुबास = सुगंध । भूषन = गहना । भावार्थ-( नायिका की उक्ति नायक प्रति ) आपको जो ( मेरा हास- विलास छोड़कर) किसी दूसरे का हास-विलास नहीं अच्छा लगता, वह सज्जनों का निश्चित स्वभाव ही है। किंतु हे हरि, बात वही करनी चाहिए जिसका सदा १-कोक-केलि। - -जासु-जाहि । अनुकुल-अतुलदक्ष । ३-नारी- नारिनि । ४–जु-सु ।