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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/६७

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द्वितीय प्रभाव नहीं होता कि श्रीकृष्ण ने किसी दूसरी स्त्री से प्रेम कर लिया है)। (३८) बहि-अंतर गूढ-अगूढ निरंतर कामकला कुल कौन गर्ने । कहि केसव हास-बिलास सबै प्रतिद्यौस बढ़ें रसरीति सनै । जिनको जिय मेरेई जीव जियै सखि काय मनो बचप्रीति घनै । तिनकों कहैं आन वधू के अधीन हैं सो परतीक किधौं सपने ।१०। शब्दार्थ-बहि = बहिः, वाहर । अंतर = भीतर । सूचना-सरदार इस सवैये को केशव का नहीं मानते । (३६) अथ शठ-लक्षण-(दोहा) मुँह मीठी बातें कहै, निपट कपट जिय जानि । जाहि न डरु अपराध को, सठ करि ताहि बखानि ।११। शब्दार्थ-निपट = अत्यंत । जानि = जानो। सठ करि= 'शठ' नाम से । बखानि = बखानो, कहो । (४०) अथ प्रच्छन्न शठ, यथा-(सवैया) रुचि पंकज चंदन बंदन कंचन रंच न रोचनहू की बची। कहिये किहि कारन को इते लायक का पर भामिनि भौंह नची । अनुमानत हौं अँखियाँ लखि लाल ये नाहिंनै राति के रोष रची। तन तेरे बियोग तप्यो तरुनी तिहिं मानहुँ मो हिय माँह तची ॥१२॥ शब्दार्थ-रुचि = छबि, शोभा। पंकज = ( यहाँ पर ) लाल कमल । चंदन लाल चंदन । बंदन = सिंदूर । कंचन = सोना। रंच थोड़ा। रोचन रोली । कों इते लायक = इस योग्य कौन है, इसका पात्र कौन है । भामिनी = स्त्री (संबोधन में) । भौंह नची = भौंह चढ़ाई है । तची = तप्त हुई। भावार्थ-( नायक की उक्ति मानिनी नायिका से ) तुम्हारे नेत्रों के द्वारा लाल कमल, रक्त चंदन, सिंदूर, सोना और रोली की शोभा कुछ भी बच न सकी ( उन्हीं की भाँति ये लाल हैं)। इसका क्या कारण है ? कौन इस ( क्रोध ) के योग्य है जिस पर तुमने भौहें चढ़ाई हैं ? तुम्हारी लाल आँखें देखकर अनुमान करता हूँ कि ये ( मेरी अनुपस्थिति के कारण ) रात में किए गए रोष से लाल नहीं हैं। प्रत्युत मेरा शरीर ( रात में ) तुम्हारे वियोग में तप रहा था इसी कारण मानो तुम्हारी आँखें मेरे हृदय ( की वियोगाग्नि ) से तपकर लाल हो गई हैं। ( क्योंकि तुम मेरे हृदय में निवास करती हो)। अलंकार-सापह्नव हेतूत्प्रेक्षा । -तिनकों-तिनसों। १२-रंचन-चंपक । बची-रची। अनुमानत- १० नमानत।