पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/१०८

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काव्य का ३६य इस अनंत विश्व के भावोत्तेजक रूप भी अनंत हैं। पर कुछ महापुरुषों ने वयं वस्तुओं तक को गिनाने का प्रयास किया। केशवदासजी को इस हवा का सबसे पिछला झोंका लगा ; इससे इनकी कविप्रिया में वयं वस्तुओं की खासी फिहरिस्त मौजूद हैं [ कविन कहे कवितान के अलंकार हैं रूप । एक कई साघार एक विसिष्ट सरुप ।। सामान्यालंकार को चारि प्रकार प्रकास । वर्ग, वण्र्य, भू, राज भूषण केसवदास ।। -कविप्रिया, पाँचवाँ प्रभाव २-३। इसी सामान्यालंकार के अंतर्गत संपूर्ण वण्र्य सामग्री का स्वरूप . विवेचित है। विशेषालकार के अंतर्गत वर्णन-शैली अर्थात् प्रसिद्ध उपमादि अलंकारों का वर्णन हुआ है।] किसी आचार्य ने कह दिया कि महाकाव्य में इतने सर्ग होने चाहिएँ और इन इन वस्तुओं का वर्णन होना चाहिए । फिर क्या था, जिसे महाकाव्य लिखने का हौसला हुआ उसे झख मारकर उन सब वस्तुओं का वर्णन करना पड़ा, चाहे कथा के प्रसंग में किसी किसी वस्तु की आवश्यकता बिलकुल न हो। इस प्रकार उन्हें अप्रासंगिक वर्णन का भी समावेश अपने काव्यों में करना पड़ा। जलविहार और श्मशान का प्रसंग चाहे कथा में न आता ही पर कविजी को उसे लाना चाहिए। - सच्चे काव्य में सहज भाव प्रधान होता है आरोपित दीं। उसमें कवि, पात्र और श्रोता तीनों के हृदय का समन्वय होता है जिससे काव्य का जो प्रकृत लक्ष्य है; पदार्थों के साथ • ३५ विश्वनाथ महापात्रकुस सत्यपंथ, 7 पनो, रोक ॥१३॥ ।