पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२३८

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व का वर्गीकरण 'मोह' र जड़ता' ये दोनों मिलती जुलती अवस्थाएँ हैं। जड़ता है एकदम ठक हो जाना जिसमें मनुष्य की शारीरिक और मानसिक दोनों क्रियाएँ एक क्षण के लिये बंद सी हो जाती हैं। यह अवस्था इष्ट और अनिष्ट दोनों के दर्शन और श्रवण से हो सकती है । इसमें चित्त की व्याकुलता नहीं रहती। ‘मोह दुःखावेग के कारण ही होता है और उसमें चित्त की व्याकुलता और मूच्र्छा होती हैं । प्रिय को सामने पाकर कभी कभी भावातिरेक के कारण कुछ क्षण तक न तो मुंह से कोई बात निकलती हैं, न पैर आगे बढ़ते हैं, टकटकी लगाकर ताकने के लिचा उनसे कुछ नहीं बन पड़ता । यह अवस्था जड़ता हैं। जो अचिंतित अथवा अद्भूत विषय के अकस्मात् सामने आने पर भी होती है। पति का मरण सुनने पर रति को मूच्र्छ । जाने से क्षण भर के लिये सुख-दुःख का कुछ भी ज्ञान नहीं रह गया । यह अवस्था मोह की है। स्वप्न के संबंध में इस बात की ओर ध्यान दिला देना फिर आवश्यक है कि संचारियों के पाँच वर्गों में से प्रथम वर्ग को छोड़ और किसी में विषय प्रधान भाव के आलंबन से भिन्न १ [ अप्रतिपत्तिर्जड़ता स्यादिष्टानिष्टदर्शनश्रुतिभिः ।। -साहित्यदर्पण, ३-१४८ । ] ३ [ मद्दों विचिन्तता भौतिदुःखावेगानुन्दिन्तनैः । मूच्छनाज्ञानपतनभ्रमणादर्शनादिकृत् ॥ | -साहित्य पण, ३-१५० | ] ३ [ तीव्राभिषङ्ग प्रभवे वृति ईन संस्तम्भयतेन्द्रियाणाम् । अज्ञानभतृव्यसन मुहू कृतोपरेव रतिर्बभूव ।। -कुमारसम्भव, ३-७३ ।]