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रस-मीमांसा

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२३० इस-मीमांसा भाव के प्रभाव से नहीं उपस्थित हुई यों ही अन्य प्राकृतिक कारणों से उपस्थित हुई है उसे भाव के संचारियों में नहीं ले सकते । पहले ‘श्रम को लीजिए । ‘श्रम के दो अर्थ हो सकते हैंएक तो व्यापाराधिक्य या किसी क्रिया का निरंतर साधन, दुसरा उससे उत्पन्न अंगग्लानि या थकावट | साहित्यदर्पण में दूसरा अर्थ ग्रहण किया गया है। पर मैं उसे यहाँ पहले ही अर्थ में रखता हूँ। किसी के प्रेम में यदि कोई दौड़-धूप करे, विद्या की प्राप्ति के लिये रात-रात भर बैठकर पढ़ता रहे, गड़ा हुआ खजाना पाने के लिये दिन भर मिट्टी खोदता रहे तो उसका यह दौड़नाधूपना, रात रात भर बैठना या दिन भर मिट्टी खोदना क्रमशः व्यक्ति, विद्या या धन के प्रति रति भाव का संचारी कहा जा सकता है। पर इस दौड़-धूप के कारण यदि कोई थककर बैठ जाय या रात भर मिहनत करने से शिथिल हो जाये तो यह थकना या शिथिल होना रति भाव से दूर पड़ जाने के कारण क्रिया या व्यापार के व्यवधान से उसके साथ प्रत्यक्ष संबंध न रखने के कारण-संचारी नहीं कहा जा सकता ।। तो क्या अंगग्लानि’ को संचारियों में लेना ही न चाहिए ? लेना चाहिए, पर वहाँ जहाँ उसका भाव के साथ सीधा संबंध हो । आरंभ ही में भाव का जो विश्लेषण किया गया है उसके अनुसार भाव के स्वरूप के भीतर अंग-रूप में अनुभाव भी आ जाते हैं। कायिक अनुभाव शारीरिक क्रिया या व्यापार के रूप १ [ खेदो रत्यध्वगत्यादेः श्वासनिद्रादिकृछमः । –साहित्यदर्पण, ३-१४६ । ]