पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२३२
रस-मीमांसा

________________

२३२ . रस-मीमांसा इसी प्रकार मरण, व्याधि और अपस्मार भी तभी संचारी होंगे जब किसी भाव के कारण होंगे, अन्यथा नहीं। । संचारियों के रूप में जिन मानसिक अवस्थाओं और वेगों या भावों का उल्लेख हुआ है उनमें से बहुत से शीलदशा को प्राप्त या प्रकृतिस्थ देखे जाते हैं। इस रूप में उनका वर्णन पात्रों ( आश्रय और आलंबन ) की गुण-योजना के प्रसंग में किया जायगा। संचारियों के विषय के संबंध में दो चार बातें कहकर अब इस प्रकरण को समाप्त करता हूँ। संचारियों में कुछ तो ऐसे हैं। जिनके विषय होते ही नहीं केवल कारण होते हैं। जैसे, सब शारीरिक अवस्थाएँ; मद, जड़ता, मोह, उन्माद और ग्लानि ये मानसिक अवस्थाएँ और बेग नामक वेग । भाव-वर्ग के तीनों भावों ( गर्व, लज्जा और असूया ) को छोड़ और सब संचारियों के या तो प्रधान भाव के आलंबन ही विषय होते हैं अथवा उनसे ( आलंबन से ) संबंध रखनेवाली वस्तुएँ । इस प्रकार कहीं कहीं आलंबन के रूप, गुण, चेष्टा आदि कारण ही संचारियों के विषय होते हैं। जिसके प्रति रति भाव है उसकी मुसकान देखकर या उसके वचन सुनकर भी हर्ष होता है और उसकी कोई वस्तु देखकर भी, जैसा कि नायक के उड़ाए हुए कबूतर को देखकर बिहारी की नायिका को हुआ है। वचन-श्रवण आदि के प्रति औत्सुक्य भी होता है। प्रिय के किसी अंग या चेष्टा मात्र से हर्ष का होना रति भाव का उत्कर्ष व्यजित करता है। जिसके १ [ ऊँचै चितै सुराहियतु गिरइकबूतरु लेतु । | झलकित इग, मुलकित बदनु, तनु पुलकित किहिं हेतु ।। -बिहारी-रत्नाकर, ३७४।]