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रस-मीमांसा

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३३८ इस-मीमांसा अनुसार किसी काव्य में आदि से अंत तक जो भाव बराबर चला जाय, अन्य भावों के बीच बीच में थोड़ी देर के लिये आ जाने से उच्छिन्न न हो, वह स्थायी भाव है और जिनका वर्णन बीच बीच में थोड़ी देर के लिये आ जाय वे संचारी कहे जायँगे। जैसे महाभारत में ‘शम प्रधान है, मालतीमाधव में रति, अंधेरनगरी में :हास, रामायण में शोक, सत्यहरिश्चंद्र में शोक इत्यादि। पर स्थायी संचारी का यह अर्थ गौण है। इसमें इस बात का विचार नहीं हो सकता कि कौन कौन भाव या वेग किन किन प्रधान भावों के संचारी हो सकते हैं। चाहे जो भाव ग्रंथ में आदि से अंत तक पाया जाय उसे स्थायी और चाहे जो भाव या वेग बीच बीच में आए हों उन्हें संचारी हुम आँख मूंदकर कह सकते हैं किसी प्रकार के विवेक की आवश्यकता नहीं । स्थायी संचारी का यह अत्यंत स्थूल रूप से ग्रहण है।