________________
असंबद्ध भावों का रसवत् ग्रहण अब तक भावों का जो वर्णन हुआ है वह स्थायी संचारी रूप में संबद्ध मानकर हुआ है। पर, जैसा कह आए हैं, नियत प्रधान भाव और नियत संचारी दोनों अलग अलग असंबद्ध रूप में भी आते हैं। इस असंबद्ध रूप में भाव पूर्ण रस पर्यंत पुष्ट चाहे न माने जायँ पर उनका ग्रहण रस के समान ही होता है क्योंकि श्रोता या दर्शक के हृदय में उनके द्वारा किसी न किसी प्रकार का भाव-संचार अवश्य होता है। जो प्रधान भाव' कहे गए हैं वे यदि संचारी आदि से रहित होकर भी आएँ तो आलंबन के सामान्य होने पर अपना संचार श्रोता के हृदय में उसी प्रकार करते हैं जिस प्रकार संचारी आदि से पुष्ट होकर आने पर। किसी दुष्ट के अत्याचार को वर्णन करके यदि कोई शब्दों द्वारा ही क्रोध प्रकट करता हुआ दिखाया जाय, अनुभाव या संचारी न लाए जायें तो भी श्रोता के हृदय में उस दुष्ट आलंबन